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विनी को उस की मां पर आश्चर्य होता, मानो कोई सरोकार ही नहीं. साल दर साल गुजरते रहे और सबकुछ उसी प्रकार चलता रहा. जेड और परिपक्व दिखाई देने लगी थी. हर साल छुट्टियों में विनी अपने पूरे परिवार सहित मुंबई आती. इस साल सलिल के मातापिता ने बच्चों को अपने साथ दिल्ली ले जाने और उन की बूआ के पास कुछ दिन ठहरने का प्रस्ताव रखा. सलिल को भी उस की बहन बारबार बुलाती थीं, सो सलिल, बच्चे एवं उस के मातापिता दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे जबकि विनी को 2 दिन बाद की टिकट मिली थी. वह मुंबई हवाई अड्डे पर उतरी तो वहां जेड को देख कर आश्चर्य से उस का मुंह खुला रह गया. हवाई जहाज से उतरते समय जेड का पैर न जाने कैसे फिसल गया था और वह किसी चीज से उलझ कर औंधेमुंह जा गिरी थी. खून से लथपथ उस को देखते ही विनी उस के पास जा पहुंची. अचानक ही ढेरों सवाल उस के जेहन में कुलबुलाने लगे. उस के साथ कोई नहीं था, कैसे और क्यों वह यहां अकेले आई थी?

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भारत और भारतीयों के लिए मन मेें ढेरों कटुता भरे हुए वह यहां आखिर करने क्या आई थी? इस सवाल को मन में रख कर विनी ने हवाई अड्डे के प्रबंधकों से जेड के साथ स्वयं भी अस्पताल चलने का आग्रह किया. विनी के भाईभाभी उसे लेने पहुंचे हुए थे, वह भी विनी के साथ अस्पताल पहुंचे. जेड का काफी खून निकल गया और उसे खून की जरूरत थी. जब विनी को पता चला कि जेड का ब्लड ग्रुप ‘बी पौजिटिव’ है तो उस ने डाक्टरों से प्रार्थना की कि वे उस का खून ले लें क्योंकि उस का भी वही ग्रुप था. देखते ही देखते विनी का खून जेड की नसों में दौड़ने लगा. जेड अब भी बेहोश थी. विनी ने अस्पताल में अपना टेलीफोन नंबर लिखवा कर प्रार्थना की कि कृपया घायल की स्थिति से उसे अवगत कराया जाए. अस्पताल में बहुत सी औप- चारिकताएं पूरी करनी थीं, सो विनी को बताना पड़ा कि वह उसे किस प्रकार जानती है और फार्म पर अपने हस्ताक्षर भी किए.

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