सुबह उठ कर बाहर आया तो देखा नेताजी बड़ी जल्दी में कहीं जा रहे हैं.

उन्हें रोकना चाहा तो कहने लगे, ‘‘अभी तो बड़ा व्यस्त हूं फिर मिलूंगा.’’

हम ने कहा, ‘‘भैया, अब ऐसी भी क्या व्यस्तता जो घड़ी दो घड़ी खड़े हो कर पान भी नहीं खा सकते? कम से कम एक पान तो खाते जाइए.’’

अब पान ठहरा नेताजी की कमजोरी, कमजोरी भी ऐसी जिस के लिए वह अपने सारे जरूरी काम किनारे कर सकते हैं. अत: कुछ सोच कर बोले, ‘‘अब आप इतना आग्रह कर रहे हैं तो आप की बात को रखते हुए पान तो मैं खा लेता हूं पर इस से ज्यादा समय मैं आप को बिलकुल नहीं दे पाऊंगा.’’

हम ने कहा, ‘‘ठीक है, पहले आप पान तो खाइए फिर बाद में देखते हैं.’’

इतना कह कर हम ने रामचरण को 2 पान लगाने का आर्डर दे कर नेताजी से पूछा, ‘‘क्या बात है, बहुत जल्दी में दिखाई दे रहे हैं?’’

वह बोले, ‘‘मत पूछिए, बहुत व्यस्त हूं. रात में 2 बजे तक जागने पर भी अभी तक काम पूरा नहीं हुआ है, आज उन का नगर आगमन होना है और अभी भी इतने सारे काम बाकी हैं, जाने क्या होगा?’’

हम ने अनजान बनते हुए पूछा, ‘‘तो क्या उन की रथयात्रा हमारे यहां से हो कर भी गुजरेगी?’’

उन्हें जोर का झटका लगा. बोले, ‘‘ भाईजी कैसी बात कर रहे हैं? यह सब स्वागत द्वार, झंडे, बैनर्स, पोस्टर्स अब उसी रथयात्रा का स्वागत करने के लिए ही तो लगाए गए हैं. यहां तो काम करकर के जान निकली जा रही है और आप पूछ रहे हैं कि यहां से भी रथयात्रा गुजरेगी?’’

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