लेखक-पुखराज सोलंकी
शाम 4 बजे के आसपास शालिनी किचन में चाय बना रही थी कि डोरबेल बजी. दरवाजा खोल कर देखा, तो वह भौचक्की रह गई. सामने वही 2 अफसर खड़े थे, जो थिएटर में समीर के बौस के साथ मौजूद थे. उन्हें हिलते हुए देख शालिनी को यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि वे दोनों शराब के नशे में हैं. वह तो उन्हें बाहर से ही रवाना करने वाली थी, लेकिन वे अंदर आ गए तो उस ने उन्हें अनमने मन से बैठने की कह कर खुद किचन में चली गई.
जब शालिनी चाय ले कर आई, तो उन्हें चाय का कप पकड़ाते हुए पूछा, ‘समीर ने बताया नहीं कि आप आने वाले हो, और आप ने घर कैसे पहचान लिया? आप तो किसी दूसरे शहर ‘दरअसल, उस दिन हम लोग थिएटर से लौटते समय इसी रास्ते से हो कर गए थे, तो बौस ने ही हमें बताया था कि यह समीर का घर है. बस इसीलिए इधर से गुजरते हुए सोचा कि आप को बधाई देते चलें,‘ एक अफसर बोला.
‘वैसे, आप का बहुतबहुत धन्यवाद, जो आप ने समीर के प्रोजैक्ट को सलैक्ट किया. बहुत मेहनत की है उस ने इस पर,‘ शालिनी उन का अहसान जताते हुए बोली.‘अजी सलैक्ट तो उसी दिन कर लिया था जब आप को थिएटर में पहली दफा देखा था,‘ दूसरा अफसर बोला.
‘क्या मतलब...?‘ शालिनी तपाक से बोली‘जी, सच कहा है. जिसे ले कर वह गया है, वह तो कंपनी का प्रोजैक्ट है, लेकिन हमारा प्रोजैक्ट तो आप ही हो न भाभीजी,‘ कहते हुए उस ने शालिनी के हाथ पर झपट्टा मारा.