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लेखिका- किरण डी. कुमार

जेठानियां तो पहले से ही नलिनी से मन ही मन जलती थीं, पर भानुमति बेन को भी जेठानियों के सुर में बोलते हुए देख कर मुझे बड़ी हैरत हुई. वह बोलीं, ‘सुशांत नलिनी को अपनी पसंद से ब्याह कर लाया था. शादी से पहले दोनों की कुंडलियां मिलाई गईं तो पाया गया कि नलिनी मांगलिक है. हम ने सुशांत को बहुत समझाया कि नलिनी से विवाह कर के उस का कोई हित न होगा.

पर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा कि अगर विवाह करेगा तो केवल नलिनी से वरना किसी से नहीं. अंत में हम ने बेटे की जिद के आगे हार मान ली. 2 साल तक नलिनी की गोद नहीं भरी. पर बाकी सब ठीक था. अब तो सुशांत शारीरिक रूप से अपंग हो गया है. वह कोमा से बाहर आएगा, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है. यह तो पति के लिए अपने साथ दुर्भाग्य ले कर आई है. जोशी बाबा भी यही कह गए हैं.’

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भानुमति बेन के घर में एक जोशी बाबा हर दूसरेतीसरे दिन चक्कर लगाते थे. उन के आते ही सारा घर उन के चारों ओर घूमने लगता. वह किसी की कुंडली देखते, किसी का हाथ. जोशी बाबा का कई परिवारों से संबंध था इसलिए उस के माध्यम से बहुत से सौदे हो जाते थे. जिसे जोशी बाबा ऊपर वाले की कृपा कहने पर अपनी दक्षिणा जरूर वसूलते थे.

नलिनी उन से सदा कतराती थी क्योंकि वह उसे सदा तीखी निगाहों से घूरते थे. दोनों जेठानियों को आशीर्वाद देते समय उन का हाथ कहीं भी फिसल जाए, वे उसे धन्यभाग समझती थीं पर नलिनी ने पहली ही बार में उन की नीयत भांप ली थी. वह हमेशा कटीकटी रहती थी. अब जोशी बाबा हर सुबह पंचामृत ले कर आते थे और डाक्टरों के विरोध के बावजूद एक बूंद सुशांत के मुंह में डाल ही जाते थे.

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