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लेखक- रतनलाल शर्मा ‘मेनारिया’

नींद में ही बड़बड़ाते हुए राधेश्याम ने फोन उठाया और कहा, ‘‘कौन बोल रहा है?’’

उधर से रोने की आवाज आने लगी. बहुत दर्दभरी व धीमी आवाज में कहा, ‘पापा, मैं लाजो बोल रही हूं… उदयपुर से.’

राधेश्याम घबराता हुआ बोला, ‘‘बेटी लाजो क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? तुम इतना धीरेधीरे क्यों बोल रही हो? सब ठीक है न?’’

लाजवंती ने रोते हुए कहा, ‘पापा, कुछ भी ठीक नहीं है. आप जल्दी से मु झे लेने आ जाओ. अगर आप नहीं आए, तो मैं मर जाऊंगी.’

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राधेश्याम घबरा कर बोला, ‘‘बेटी लाजो, ऐसी बात क्यों कह रही है? दामाद ने कुछ कहा क्या?’’

लाजवंती बोली, ‘पापा, आप जल्दी आ जाना. अब मैं यहां रहना नहीं चाहती. मैं रेलवे स्टेशन पर आप का इंतजार करूंगी.’

फोन कट गया. दोनों पतिपत्नी बहुत परेशान हो गए.

तुलसी ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं आप को हमेशा से कहती रही हूं कि एक बार लाजो से मिल कर आ जाते हैं, लेकिन आप को फुरसत कहां है.’’

राधेश्याम ने कहा, ‘‘मु झे लगता है, दामाद ने ही लाजो को बहुत परेशान किया होगा.’’

तुलसी ने रोते हुए कहा, ‘‘अब मैं कुछ सुनना नहीं चाहती हूं. आप जल्दी उदयपुर जा कर बेटी को ले आओ. न जाने वह किस हाल में होगी.’’

‘‘अरे लाजो की मां, अब रोना बंद कर. वह मेरी भी तो बेटी है. जितना दुख तु झे हो रहा है, उतना ही दुख मु झे भी है. तुम औरतें दुनिया के सामने अपना दुख दिखा देती हो, हम मर्द दुख को मन में दबा देते हैं, दुनिया के सामने नहीं कर रख पाते हैं.’’

राधेश्याम उसी समय उदयपुर के लिए रेल से निकल गया. उस के मन में बुरे विचार आने लगे थे. वह पुरानी यादों में खो गया.

लाजवंती राधेश्याम और तुलसी की एकलौती संतान थी. दोनों पतिपत्नी लाजवंती को प्यार से लाजो कह कर पुकारते थे. उन्होंने उस की हर ख्वाहिश पूरी की थी.

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लाजवंती की उम्र शादी के लायक हो चुकी थी, इसीलिए राधेश्याम को थोड़ी चिंता हुई. वह दौड़भाग कर लाजवंती के लिए अच्छा वर तलाश करने लगा, पर जहां वर अच्छा मिलता और वहां खानदान अच्छा नहीं मिलता. जहां खानदान अच्छा मिलता, वहां वर अच्छा नहीं मिलता.

बहुत दौड़भाग के बाद राधेश्याम ने चित्तौड़गढ़ शहर में लाजवंती का रिश्ता तय कर दिया.

लाजवंती का ससुर भूरालाल वन विभाग से कुछ महीने पहले रिटायर हुआ था. उस के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा मनोज चित्तौड़गढ़ में ही बैंक में कैशियर के पद पर काम करता था, जबकि छोटा बेटा दीपक उदयपुर में एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. उसी से लाजवंती का रिश्ता तय हुआ था.

भूरालाल की पत्नी की मौत हो चुकी थी. वह दीपक की कुछ गलत आदतों से चिंतित था. जब लाजवंती जैसी होनहार व पढ़ीलिखी लड़की के साथ शादी

हो जाएगी तो दीपक सभी बुरी आदतों को भूल जाएगा, इसलिए भूरालाल चिंता से कुछ मुक्त हुआ.

राधेश्याम ने धूमधाम से लाजवंती की शादी की. दहेज भी खूब दिया. विदाई के बाद वे दोनों घर में अकेले रह गए.

जब लाजवंती पहली बार ससुराल आई तो उसे ससुराल में जितना प्यार मिलना चाहिए था, नहीं मिला. वह मायूस हो गई. लाजवंती की जेठानी का बरताव उस के प्रति अच्छा नहीं था, न ही उस के पति का बरताव अच्छा था.

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शादी होते ही दीपक उदयपुर में नौकरी पर चला गया. वह लाजवंती को साथ में नहीं ले गया था.

जब लाजवंती दोबारा ससुराल आई, तो ससुर भूरालाल का विचार था कि बहू दीपक के साथ रहे, लेकिन दीपक उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता था.

जब भूरालाल ने दीपक को सम झाया व उस को भलाबुरा कहा, तब जा कर मजबूरी में वह लाजवंती को अपने साथ ले गया.

उदयपुर में वे किराए के मकान में रहने लगे. दीपक की सब से बुरी आदत थी जुआ खेलना व शराब पीना, जिस से वह घर पर हमेशा देर रात तक पहुंचता था. इस बात से लाजवंती बहुत परेशान थी. दीपक की तनख्वाह भी जुए व शराब में खर्च होने लगी थी, इसलिए महीने के अंत में कुछ नहीं बच पाता था.

एक दिन ससुर भूरालाल अचानक उदयपुर दीपक के घर पहुंच गया. उस समय लाजवंती पेट से थी.

बहू लाजवंती की ऐसी दयनीय हालत देख कर भूरालाल ने रोते हुए कहा, ‘बेटी, मैं तेरा गुनाहगार हूं. मेरी वजह से तेरी यह हालत हुई है. मु झे माफ कर देना.’

लाजवंती ने अपने ससुर को सम झाते हुए कहा, ‘इस में आप का कोई कुसूर नहीं है, आप मत रोइए. मैं आप के बेटे को सुधार नहीं सकी. मैं ने पूरी कोशिश की, लेकिन नाकाम रही.’

भूरालाल बेमन से चित्तौड़गढ़ लौट गया. लाजवंती की ऐसी हालत देख वह दुखी था. इसी गहरी चिंता की वजह से एक दिन भूरालाल को अचानक हार्टअटैक आ गया और उस की मौत हो गई.पर भूरालाल की मौत से दीपक की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया.

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समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाजवंती के एक बेटा हो गया, जो अब 5 साल का हो गया था. लाजवंती सिलाई कर के अपना घरखर्च चला रही थी.

कुछ महीने बाद दीपक की नौकरी छूट गई, क्योंकि वह हमेशा शराब पी कर औफिस जाने लगा था, इसलिए कंपनी वालों ने उसे नौकरी से निकाल दिया. उस को घर बैठे एक महीना बीत गया.

एक दिन दीपक ने लाजवंती के सोने के कंगन चुरा कर बाजार में बेच दिए. जब लाजवंती को पता चला तो दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा हुआ. उस ने लाजवंती को मारापीटा.

एक दिन दीपक घर देरी से पहुंचा. उस समय लाजवंती दीपक के आने का इंतजार कर रही थी. दीपक ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी. आज वह जुए में 10,000 रुपए हार गया था. आज उस का लाजवंती से कुछ और चीज छीनने का इरादा था.

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