‘‘दिस इज माई च्वाइस. अकेलेपन की उदासी अकसर बहुत करीबी दोस्त होती है हमारी. हां, राशा तो वहां से अगले दिन घर लौट गई थी. हमारी एक सैलानी टोली है, पर मैं उन के शोर में ज्यादा देर नहीं टिक पाती.’’
हम दोनों कोने में लगी बेंच पर जा बैठे. झील में परछाइयां फैल रही थीं.
मैं ने उस दिन राशा की विदाई वाला किस्सा उसे सुनाया तो वह संजीदा हो उठा, ‘‘आप लोग बड़ी हैं तो भी इतना सम्मान देती हैं...वरना मैं तो बहुत मामूली व्यक्ति हूं.’’
‘‘क्या मैं पूछ सकती हूं कि आप करते क्या हैं?’’
‘‘इस तरह की जगहों के बारे में लिखता हूं और उस से कुछ कमा कर अपने घूमने का शौक पूरा करता हूं. कभीकभी आप जैसे अद्भुत लोग मिल जाते हैं तो सैलानी सी कहानी भी कागज पर रवानी पा लेती है.’’
‘‘वंडरफुल.’’
मैं ने उसे राशा का पता नोट करने को कहा तो वह बोला, ‘‘उस से क्या होगा? लेट द थिंग्स गो फ्री...’’
मैं चुप रह गई.
‘‘पता छिपाने में मेरी रुचि नहीं है...’’ वह बोला, ‘‘फिर मैं तो एक लेखक हूं जिस का पता चल ही जाता है.’’
‘‘फिर...पता देने में क्या हर्ज है?’’
‘‘बंधन और रिश्ते के फैलाव से डरता हूं... निकट आ कर सब दूर हो जाते हैं...अकसर तड़पा देने वाली दूरी को जन्म दे कर...’’
‘‘उस रोज भी शायद तुम डरे थे और जल्दी से भाग निकले थे.’’
‘‘हां, आप के कारण.’’
मैं बुरी तरह चौंकी.
‘‘उस रोज आप को देखा तो किसी की याद आ गई.’’
‘‘किस की?’’
‘‘थी कोई...मेरे दिल व दिमाग के बहुत करीब...दूरदूर से ही उसे देखता रहा और उस के प्रभामंडल को...’’ कहतेकहते वह कहीं खो गया.