होस्टल में आज जश्न का माहौल था. आखिर मैडिकल की पढ़ाई पूरी कर के सब डाक्टर जो बन गए थे. संजय तो बहुत ज्यादा खुश था. डाक्टर की डिगरी पाना उस के लिए सपने से कम नहीं था. गांव के जिस छोटी सोच से भरे माहौल में वह पलाबढ़ा था, वहां डाक्टरी की पढ़ाई करना ही अपनेआप में बड़ी कामयाबी थी.
यह सब तो उस के पिता की मेहनत का नतीजा था. वे चाहते थे कि उन के बीच से ही कोई डाक्टर हो कर समाज के गरीब लोगों को अच्छा इलाज मुहैया करा सके.
‘‘अरे डाक्टर संजय, तुम यहां अकेले और उदास क्यों बैठे हो? आज तो तुम्हारे और हम सब के लिए सब से बड़ी खुशी का दिन है. हमारे सपने जो पूरे होने जा रहे हैं,’’ पढ़ाई के दौरान उस की सब से अच्छी दोस्त रही भूमिका ने कहा.
संजय भूमिका के सवाल पर मुसकरा दिया. वह उस हाल के बाहर गलियारे में अकेला बैठा था, ताकि कोई उसे न देख पाए. वह खुशी उस अकेले की नहीं थी, बल्कि उस में उस के परिवार, गांव के सब दोस्त, आसपड़ोस में रहने वाले उन सब लोगों का हिस्सा थी, जिन्होंने उस के दाखिले में अपना योगदान दिया था.
‘‘अब चलो भी. पार्टी खत्म होने वाली है. इस के बाद सब लोग बैठ कर अपनी आने वाली जिंदगी पर चर्चा करेंगे. आज इकट्ठा बैठने का आखिरी दिन जो है,’’ संजय को चुप देख कर भूमिका ने फिर कहा.
संजय आटोमैटिक मशीन सा उठ कर भूमिका के साथ हो लिया.
सब लोग हाल में एक जगह कुरसियां डाल कर बैठे थे. पार्टी शायद खत्म हो गई थी. सब को घर जाने की जल्दी जो थी. संजय को उन से भी ज्यादा जल्दी थी.
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