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उस के बाद के कुछ दिन बेहद व्यस्तता में बीते. स्कूल में समयसमय पर किसी नामी हस्ती को बुला कर विविध विषयों पर व्याख्यान आयोजित होते रहते थे जिस से बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके. इस बार का विषय था ‘व्यक्तित्व को आकर्षक और खूबसूरत कैसे बनाएं.’ विचार व्यक्त करने के लिए एक जानीमानी हस्ती आ रही थी.

आयोजन को सफल बनाने की जिम्मेदारी मुख्याध्यापिका ने चित्रा को सौंप दी. हाल को सुनियोजित करना, नाश्तापानी की व्यवस्था के साथ हर क्लास को इस आयोजन की जानकारी देना, सब उसे ही संभालना था. यह सब वह सदा करती आई थी पर इस बार न जाने क्यों वह असहज महसूस कर रही थी. ज्यादा सोचने की आदत उस की कभी नहीं रही. जिस काम को करना होता था, उसे पूरा करने के लिए पूरे मनोयोग से जुट जाती थी और पूरा कर के ही दम लेती थी पर इस बार स्वयं में वैसी एकाग्रता नहीं ला पा रही थी. शायद अभिनव और रमा उस के दिलोदिमाग में ऐसे छा गए थे कि  वह चाह कर भी न उन की समस्या का समाधान कर पा रही थी और न ही इस बात को दिलोदिमाग से निकाल पा रही थी.

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आखिर वह दिन आ ही गया. नीरा कौशल ने अपना व्याख्यान शुरू किया. व्यक्तित्व की खूबसूरती न केवल सुंदरता बल्कि चालढाल, वेशभूषा, वाक्शैली के साथ मानसिक विकास तथा उस की अवस्था पर भी निर्भर होती है. चालढाल, वेशभूषा और वाक्शैली के द्वारा व्यक्ति अपने बाहरी आवरण को खूबसूरत और आकर्षक बना सकता है पर सच कहें तो व्यक्ति के व्यक्तित्व का सौंदर्य उस का मस्तिष्क है. अगर मस्तिष्क स्वस्थ नहीं है, सोच सकारात्मक नहीं है तो ऊपरी विकास सतही ही होगा. ऐसा व्यक्ति सदा कुंठित रहेगा तथा उस की कुंठा बातबात पर निकलेगी. या तो वह जीवन से निराश हो कर बैठ जाएगा या स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने के लिए कभी वह किसी का अनादर करेगा तो कभी अपशब्द बोलेगा. ऐसा व्यक्ति चाहे कितने ही आकर्षक शरीर का मालिक क्यों न हो पर कभी खूबसूरत नहीं हो सकता, क्योंकि उस के चेहरे पर संतुष्टि नहीं, सदा असंतुष्टि ही झलकेगी और यह असंतुष्टि उस के अच्छेभले चेहरे को कुरूप बना देगी.

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