राइटर- नम्रता सरन ‘सोना’
रुपाली को बिलकुल अच्छा नहीं लगा कि मिस्टर रोहित गोयनका ने उसे नोटिस नहीं किया. उसे एक नजर उठा कर भी नहीं देखा. वह कैसे बरदाश्त कर लेती यह अनदेखी, जबकि उस की तो आदत थी कि उसे देख कर हर कोई ऐक्स्ट्रा कमैंट्स जरूर करे, लेकिन इस नए मैनेजिंग डायरैक्टर ने उसे कोई तवज्जुह ही नहीं दी.
रुपाली अपनी जुल्फें अपने खुले हुए कंधों से बारबार हटा कर अपने चमकते गालों से ले कर सुराहीदार चिकनी गरदन पर अपनी पतलीपतली लंबी सी उंगलियां फिरा कर बराबर ध्यान खींचने की कोशिश करती रही, लेकिन मिस्टर रोहित गोयनका स्क्रीन पर नए प्रोडक्ट को लौंच करने का प्रोजैक्ट समझाने में ही बिजी रहे.
‘‘मिस दिव्या छजलानी, आप इस प्रोजैक्ट को हैंडल करेंगी. आप इस असाइनमैंट की हैड होंगी... ओके... आल क्लियर... आज की मीटिंग खत्म हुई... बाय,’’ कह कर रोहित गोयनका बोर्डरूम से निकल गया.
रुपाली का चेहरा गुस्से और जलन से तमतमा रहा था. इतनी बेइज्जती, एक जूनियर को प्रोजैक्ट का हैड बना दिया, उस से यह बात बिलकुल भी सहन नहीं हो रही थी.
‘बधाई हो दिव्या,’ सभी मिस दिव्या छजलानी को प्रोजैक्ट हैड बनने पर बधाई दे रहे थे, लेकिन रुपाली के सीने पर सांप लोट रहे थे.
एकएक कर के सभी बोर्डरूम से बाहर निकल गए.
‘‘रुपालीजी, क्या बात है? आप कुछ डिस्टर्ब लग रही हैं. लगता है, आप खुश नहीं हैं दिव्याजी की अचीवमैंट से. आप ने उन्हें बधाई भी नहीं दी,’’ एक साथी ने आग में घी डालते हुए कहा.
‘‘मेरी बला से... अब तो हद हो गई है... कल बात करती हूं,’’ कह कर पैर पटकते हुए रुपाली वहां से निकल गई.
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