पूर्व कथा मां की मौत के बाद संध्या अकेली रह जाती है. बेमन से आफिस जाती है. वहां उस का मन नहीं लगता तो घर वापस आ महरी को डांटने लगती है. महरी उसे चाय बना कर देती है और वह बचपन की यादों में खो जाती है.

संध्या अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. बेटी होने के बावजूद बेटे की तरह पाला था उन्होंने उसे. उस के दबंग और अक्खड़ स्वभाव के कारण स्कूलकालिज में लड़के उस से बात तक नहीं करते थे. एम.बी.ए. करने के बाद संध्या के लिए अच्छे घर के रिश्ते आने लगे थे. वह मीनमेख निकाल कर इनकार कर देती लेकिन पिता की जिद के आगे झुक कर ‘हां’ करनी पड़ी. शादी के दिन उस ने अपने पापा के गिड़गिड़ाने की आवाज सुनी तो गुस्से में आ कर शादी से इनकार कर दिया. इस हादसे से दुखी उस के पापा की मौत हो गई लेकिन मरने से पहले संध्या को शादी के दिन का सच बता गए. मां भी उस के दबंग स्वभाव की वजह से चुप रह गई थीं. मातापिता की मौत के बाद संध्या का झूठा दंभ टूट जाता है और उसे अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगता है.

और अब आगे...  संध्या की मां को गुजरे 4-5 दिन हो चुके थे पर वह आज भी अतीत में विचरण कर रही थी. 15 अगस्त वाले दिन सुबहसुबह मेरी अंतरंग सहेली वंदना मिलने आ गई. मैं उसे देखते ही उछल पड़ी और बोली, ‘अब आई है तुझे मेरी याद.

मां की अंतिम यात्रा में शामिल हो कर तू ने समझा सारे फर्ज निभा दिए.’  नाराज होते हुए वह बोली, ‘मिलूं कैसे, आफिस में तेरा फोन हमेशा व्यस्त रहता है और घर तू देर से पहुंचती है.’ ‘अच्छा, अब बातें न बना,’ यह कह कर उस का हाथ पकड़ उसे बिठाते हुए मैं बोली, ‘बता, क्या लेगी?’ ‘कुछ भी बना ले,’ वंदना बोली, ‘तेरी बड़ी याद आ रही थी, सो सोचा कि तू आज के दिन तो घर पर ही मिलेगी,’ और इसी के साथ वंदना पांव पसार कर बैठ गई.

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