लेखक- मृणालिका दूबे
साहिल और विक्रम गाड़ी से उतर कर मन ही मन भुनभुनाते हुए धक्का लगाने लगे, तभी रात के सन्नाटे में एकदम से पुलिस सायरन की आवाज गूंज उठी.
कुछ ही पलों में एक पुलिस जीप आ कर निया की गाड़ी के पास रुक गई.
विक्रम और साहिल ठिठक कर जीप की ओर देखने लगे. उस में से एक पुलिस अफसर उतरा और इन दोनों के करीब आता हुआ कड़क लहजे में बोला, ‘‘आधी रात के वक्त इस सुनसान सड़क पर क्या कर रहे हो तुम लोग?’’
विक्रम ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘करेंगे क्या, अपनी किस्मत को कोसते हुए इस बंद पड़ी गाड़ी को धकेल रहे हैं.’’
अफसर का लहजा अब और सख्त हो गया, ‘‘सीधेसीधे बताओ कि बात क्या है? यूं फिलासफी झाड़ने के लिए नहीं कहा मैं ने.’’
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अब निया गाड़ी से बाहर निकलती हुई नरमी से बोली, ‘‘सर, हम औफिस से घर जा रहे थे कि रास्ते में अचानक ही गाड़ी बंद पड़ गई.’’
‘‘ओह तो ये बात है...’’ पुलिस अफसर ने घूरते हुए कहा.
फिर अपने साथ खड़े कांस्टेबल से बोला, ‘‘जरा तलाशी तो लो इस गाड़ी की अच्छे से.’’
कांस्टेबल तुरंत आगे बढ़ कर गाड़ी की तलाशी लेने लगे. अफसर ने निया से गाड़ी के पेपर्स मांगे तो निया हिचकते हुए बोली, ‘‘सर, प्लीज आप बिनावजह तलाशी ले रहे हैं. देखिए न कितनी रात हो चुकी है. और मैं अकेली लड़की...’’
‘‘अकेली? अकेली कहां हैं आप...ये दोनों भी तो आप ही के साथ हैं न?’’ अफसर ने जोर देते हुए कहा.
फिर गाड़ी के पेपर्स देखते ही एकदम चौंक कर बोला, ‘‘सुनैना साहनी? आप सुनैना हो, वो फेमस रिपोर्टर?’’
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