कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अगले दिन उन की बीवी आसिया अपने बेटे नदीम का पैगाम ले कर हिना के घर जा पहुंची. घर और वर दोनों ही अच्छे थे. हिना के घर में खुशी की लहर दौड़ गई. हिना ने एक पार्टी में नदीम को देखा हुआ था. लंबाचौड़ा गबरू जवान, साथ ही शरीफ और मिलनसार. नदीम उसे पहली ही नजर में भा सा गया था. इसलिए जब आसिया ने उस की मरजी जाननी चाही तो वह सिर्फ मुसकरा कर रह गई. हिना के मांबाप जल्दी शादी नहीं करना चाहते थे. मगर दूसरे पक्ष ने इतनी जल्दी मचाई कि उन्हें उसी महीने हिना की शादी कर देनी पड़ी.

हिना दुखतकलीफ से दूर प्यार- मुहब्बत भरे माहौल में पलीबढ़ी थी और उस की ससुराल का माहौल भी कुछ ऐसा ही था. सुखसुविधाओं से भरा खातापीता घराना, बिलकुल मांबाप की तरह जान छिड़कने वाले सासससुर, सलमा और नगमा जैसी प्यारीप्यारी चाहने वाली ननदें. सलमा उस की हमउम्र थी. वे दोनों बिलकुल सहेलियों जैसी घुलमिल कर रहती थीं. उन सब से अच्छा था नदीम, बेहद प्यारा और टूट कर चाहने वाला, हिना की मामूली सी मामूली तकलीफ पर तड़प उठने वाला. हिना को लगता था कि दुनिया की तमाम खुशियां उस के दामन में सिमट आई थीं. उस ने अपनी जिंदगी के जितने सुहाने ख्वाब देखे थे, वे सब के सब पूरे हो रहे थे.

ये भी पढ़ें- पानी: रमन ने कैसे दिया जवाब

किस तरह 3 महीने गुजर गए, उसे पता ही नहीं चला. हिना अपनी नई जिंदगी से इतनी संतुष्ट थी कि मायके को लगभग भूल सी गई थी. उस बीच वह केवल एक ही बार मायके गई थी, वह भी कुछ घंटों के लिए. मांबाप और भाईबहन के लाख रोकने पर भी वह नहीं रुकी. उसे नदीम के बिना सबकुछ फीकाफीका सा लगता था. एक दिन हिना बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी कि नदीम बाहर से ही खुशी से चहकता हुआ घर में दाखिल हुआ. उस के हाथ में एक मोटा सा लिफाफा था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...