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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

अजय अरोड़ा ने पूछा, तो प्रतिउत्तर में शुभी जोरों से रोने लगी.

“मैं तो आप को एक नेक इनसान समझती थी, पर मुझे क्या पता था कि आप भी और मर्दों की तरह ही निकलेंगे,” शुभी ने सुबकते हुए कहा.

“आखिर बात क्या है? कुछ तो बताओ,” परेशान हो उठे थे अजय अरोड़ा.

इस के जवाब में शुभी ने अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाला, बल्कि अपने मोबाइल की स्क्रीन को औन कर के अजय अरोड़ा की तरफ बढ़ा दिया.

अजय ने मोबाइल की स्क्रीन पर देखा, तो मोबाइल पर कुछ तसवीरें थीं, जिस में शुभी के जिस्म का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह से नग्न था और अजय अरोड़ा उस के ऊपर लेटे हुए थे. एक नहीं, बल्कि कई तसवीरें थीं इन दोनों की, जो ये बताने के लिए काफी थीं कि कल रात उन दोनों के बीच जिस्मानी संबंध बने थे.

“पर, ये सब मैं ने नहीं किया...” अजय अरोड़ा ने कहा.

“आप सारे मर्दों का यही तरीका रहता है... कल जब मैं दूध का गिलास ले कर आई, तो आप नशे में लग रहे थे और आप ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे साथ गलत काम किया... गलती मेरी ही है, आखिर मैं ने आप की आंखों में वासना के कीड़ों को क्यों नहीं पहचान लिया?” रोते हुए शुभी ने कहा.

“पर, भला ये तसवीरें तुम ने क्या सोच कर खींचीं?” माथा ठनक उठा था अजय अरोड़ा का.

“अगर, मैं ये तसवीरें नहीं लेती, तो भला आप क्यों मानते कि आप ने मेरे साथ गलत किया है,” शुभी का सवाल अचूक था और सारे सुबूत सामने थे, इसलिए अजय अरोड़ा का मन भी इन सब बातों को मानने के लिए मजबूर था, क्योंकि बचपन में उन्हें नींद में चलने की बीमारी थी, जो कि काफी समय बीतने के बाद ही सही हो सकी थी.

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