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‘‘शुक्रिया, आंटीजी...’’
‘‘यह तो हमारा फर्ज है बेटाजी,’’ श्रीमती साहनी उठ खड़ी हुईं.
उन के जाने के बाद सायरा ने राहत की सांस ली. हालांकि सरवर के जरिए अम्मी को उस की खैरखबर भिजवाने की जिम्मेदारी और सरवर के साथ वीडियो कानफें्रसिंग करवाने की बात कर के आंटी ने उसे बहुत राहत दी थी मगर उन का यह कहना ‘हमारे यहां तो कसूरवार को भी तंग नहीं करते तो बेकसूर को क्यों परेशान करेंगे’ या ‘यह तो हमारा फर्ज है’ उसे खुद और अपने मुल्क पर कटाक्ष लगा. वह कहना चाहती थी कि आप लोगों की अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने और एहसान चढ़ाने की आदत से चिढ़ कर ही तो लोग आप को मजा चखाने की सोचते हैं.
सायरा को लंदन स्कूल औफ इकनोमिक्स के वे दिन याद आ गए जब पढ़ाई के दबाव के बावजूद वह और मंसूर एकदूसरे के साथ वहां के धुंधले सर्द दिनों में इश्क की गरमाहट में रंगीन सपने देखते थे. सुनने वालों को तो यकीन नहीं होता था लेकिन पहली नजर में ही एकदूसरे पर मर मिटने वाले मंसूर और सायरा को एकदूसरे के बारे में सिवा नाम के और कुछ मालूम नहीं था.
अंतिम वर्ष में एक रोज जिक्र छिड़ने पर कि नौकरी की तलाश के लिए कौन क्या कर रहा है, सायरा ने मुंह बिचका कर कहा था, ‘नौकरी की तलाश और वह भी यहां? यहां रह कर पढ़ाई कर ली वही बहुत है.’
‘तुम ने तो मेरे खयालात को जबान दे दी, सायरा,’ मंसूर फड़क कर बोला, ‘मैं भी डिगरी मिलते ही अपने वतन लौट जाऊंगा.’
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