लेखक- एम. अशफाक
डीआईजी साहब ने उन की बात ध्यान से सुनी, एसपी से सलाह भी ली, उन्हें रिपोर्ट पर पुनर्विचार करने के लिए कहा, लेकिन बेकार. एसपी साहब टस से मस नहीं हुए.
एसपी ने कहा, ‘‘आप को हत्यारा चाहिए, आप अकबर शाह और तलजा राम को गिरफ्तार करने की आज्ञा दे दीजिए, हत्यारा स्वयं चल कर आ जाएगा.’’ लेकिन डीआईजी साहब तैयार नहीं हुए.
मैं उन दिनों सिंध क्राइम ब्रांच में एसपी था. मेरे पास ऐसे बहुत से केस आते रहते थे. एक दिन मेरी मेज पर रेलवे एसपी साहब की तफ्तीश की फाइल भी आ पहुंची. डीआईजी ने मुझे उस की तफ्तीश के लिए कहा था. साथ ही अकबर शाह और तलजा राम को मीरपुर खास से दूसरे शहर में तैनात कर दिया, जिस से तफ्तीश में कोई बाधा न पडे़े.
रेलवे के एसपी साहब मेरे सीनियर भी थे और अच्छे दोस्त भी. तफ्तीश में हिचकिचाहट तो हो रही थी लेकिन हुक्म तो हुक्म था, इसलिए मैं ने काम शुरू कर दिया.
सब से पहले मैं एसपी साहब से मिला और उन से तफ्तीश के बारे में बात की. उन्होंने कहा, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि वे दोनों कैसे आदमी हैं. उन दोनों की प्रसिद्धि आप ने भी सुन रखी होगी. अपने अपमान का बदला कैसे लेते हैं, यह भी आप जानते होंगे. उन के लिए हत्या करवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. मृतक कोई आम आदमी नहीं, रेलवे का उच्च अधिकारी था. उस की हत्या करने की हिम्मत उन के अलावा किसी में नहीं हो सकती.’’
‘‘यह बात तो ठीक है, लेकिन किसी की इतनी जल्दी हत्या करवाना भी तो संभव नहीं है. पथोरो से गाड़ी रात के 8 बजे चली, शादीपुर स्टेशन वहां से 14 मील दूर है. गाड़ी वहां करीब 9 बजे पहुंची होगी, 4 मिनट वहां ठहरी भी होगी. अकबर और तलजा राम वहां नहीं उतरे, बल्कि हैदराबाद गए थे. उन्होंने 2-4 मिनट में हत्यारा कैसे तलाश कर लिया, जो वहां से गाड़ी में सवार हो कर पथोरो जा पहुंचा.’’