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मैं ने इधरउधर से 1 लाख उधार लिए और बहुत बड़ा जश्न किया. शिखा के लिए भी एक बहुत प्यारी नारंगी रंग की रेशम के काम की साड़ी ली. उस में शिखा का गेहुआं रंग और निखर रहा था. उस की आंखों में सितारे चमक रहे थे और मुझे अपने पर गर्व हो रहा था.

फिर किसी और से उधार ले कर मैं ने पहले व्यक्ति का उधार चुकाया और फिर यह धीरेधीरे मेरी आदत में शुमार हो गया.

मेरी देनदारी कभी मेरी मां तो कभी भाई चुका देते. शिखा और अन्वी से सब प्यार करते थे, इसलिए उन तक बात नहीं पहुंचती थी.

ऐसा नहीं था कि मैं इस जाल से बाहर नहीं निकलना चाहता था पर जब सब खाक हो जाता है तब लगता है काश मैं पहले शर्म न करता या शिखा से पहले बोल पाता. मैं एक काम कर के अपनी लकीर को थोड़ा बढ़ाता पर अनिल फिर उस लकीर को बढ़ा देता.

यह खेल चलता रहा और फिर धीरेधीरे मेरे और शिखा के रिश्ते में खटास आने लगी.

शिखा को खुश करने की कोशिश में मैं कुछ भी करता पर उस के चेहरे पर हंसी न ला पाता. शिखा के मन में एक अनजाना डर बैठ गया था. उसे लगने लगा था मैं कभी कुछ भी ठीक नहीं कर सकता या मुझे ऐसा लगने लगा था कि शिखा मेरे बारे में ऐसा सोचती है.

अन्वी 2 साल की हुई और शिखा ने एक दफ्तर में नौकरी आरंभ कर दी. मुझे काफी मदद मिल गई. मैं ने नौकरी छोड़ कर व्यापार की तरफ कदम बढ़ाए. शिखा ने अपनी सारी बचत से और मेरी मां ने भी मेरी मदद करी.

2-3 माह में थोड़ाथोड़ा मुनाफा होने लगा. उस दौड़ में पहला स्थान प्राप्त करने के चक्कर में मैं शायद सहीगलत में फर्क को नजरअंदाज करने लगा. थोड़ा सा पैसा आते ही दिलखोल कर खर्च करने लगा. अचानक एक दिन साइबर सैल से पुलिस आई जांच के लिए. पता चला कि मेरी कंपनी के द्वारा कुछ ऐसे पैसे का लेनदेन हुआ है जो कानून के दायरे में नहीं आता है. एक बार फिर से मैं हाशिए पर आ खड़ा हो गया. जितना कामयाब होने की कोशिश करता उतनी ही नाकामयाबी मेरे पीछेपीछे चली आती.

शिखा ने कहा कि मैं कभी भी उस के या अन्वी के बारे में नहीं सोचता. हमेशा सपनों की दुनिया में जीता हूं.

शायद वह अपनी जगह ठीक थी पर उसे यह नहीं मालूम था कि मैं सबकुछ उसे और अन्वी को एक बेहतर जिंदगी देने के लिए करता हूं. पर क्या करूं मैं ऊपर उठने की जितनी भी कोशिश करता उतना ही नीचे चला जाता हूं. हमारे रिश्ते की खाई गहरी होती गई. हम पतिपत्नी का प्यार अब न जाने कहां खोने लगा.

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यह सोचता हुआ मैं वर्तमान में लौट आया हूं.

कल शिखा की छोटी बहन की शादी है. सभी रिश्तेदार एकत्रित हुए हैं. न जाने क्या सोच कर मैं शिखा के लिए अंगूठी खरीद ले आया. सब लोग शिखा की अंगूठी की तारीफ कर रहे थे और मैं खुशी महसूस कर रहा था. वह अलग बात है, मैं इन पैसों से पूरे महीने का खर्च चला सकता था.

तभी देखा कि नीतू सब को अपना कुंदन का सैट दिखा रही है जो उस ने खासतौर पर इस शादी में पहनने के लिए खरीदा था. मुझे अंदर से आज बहुत खालीखाली महसूस हो रहा था. मैं इन लकीरों के खेल में उलझ कर आज खुद को बौना महसूस कर रहा हूं.

बरात आ गई थी. चारों तरफ गहमागहमी का माहौल था. तभी अचानक पीछे से किसी ने आवाज लगाई. मुड़ कर देखा तो देखता ही रह गया.

मेरे सामने भावना खड़ी थी. भावना और मैं कालेज के समय बहुत अच्छे मित्र थे या यों कह सकते वह और मैं एकदूसरे के पूरक थे. प्यार जैसा कुछ था या नहीं, नहीं मालूम पर उस के विवाह के बाद बहुत खालीपन महसूस हुआ. भावना जरा भी नहीं बदली थी या यों कहूं पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. वही बिंदासपन, बातबात पर खिलखिलाना.

मुझे देखते ही बोली, ‘‘सुमि, क्या हाल बना रखा है… तुम्हारी आंखों की चमक कहां गई?’’

मैं चुपचाप मंदमंद मुसकराते हुए उसे एकटक देख रहा था. मन में अचानक यह

खयाल आया कि काश मैं और वह मिल कर

हम बन जाते.

भावना चिल्लाई, ‘‘यह क्या मैं ही बोले जा रही हूं और तुम खोए हुए हो?’’

हम गुजरे जमाने में पहुंच गए. 3 घंटे 3 मिनट की तरह बीत गए. होश तब आया जब शिखा अन्वी को ले कर आई और शिकायती लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें सब वहां ढूंढ़ रहे हैं.’’

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मैं ने उन दोनों का परिचय कराया और फिर शिखा के साथ चला गया. पर मन वहीं भावना के पास अटका रह गया. जयमाला के बाद फिर से भावना से टकरा गया.

भावना निश्छल मन से शिखा से बोली, ‘‘शिखा, आज की रात तुम्हारे पति को चुरा रही हूं… हम दोनों बरसों बाद मिले हैं… फिर पता नहीं मिल पाएं या नहीं.’’

ये सब सुन कर मुझे पता लग गया था कि मैं अब भावना का अतीत ही हूं और शायद उस ने कभी मुझे मित्र से अधिक अहमियत नहीं दी थी. यह तो मैं ही हूं जो कोई गलतफहमी पाले बैठा था.

फिर भावना कौफी के 2 कप ले आई. मुसकराते हुए बोली, ‘‘चलो हो जाए कौफी

विद भावना.’’

मैं भी मुसकरा उठा. मैं ने औपचारिकतावश उस से उस के घरपरिवार के बारे में पूछा. उस से बातचीत कर के मुझे आभास हो गया था कि मेरी सब से प्यारी मित्र अपनी जिंदगी में बहुत खुश है पर यह क्या मुझे सच में बहुत खुशी हो रही थी?

भावना ने मुझ से पूछा, ‘‘और सुमि

तुम्हारी कैसी कट रही है? बीवी तो तुम्हारी

बहुत प्यारी है.’’

उस के आगे मैं कभी झूठ न बोल पाया था तो आज कैसे बोल पाता. अत: मैं ने उसे अपना दिल खोल कर दिखा दिया. मैं ने उस से कहा, ‘‘भावना, मैं क्या करूं… मैं हार गया यार… जितनी कोशिश करता हूं उतना ही नीचे चला जाता हूं.’’

भावना बोली, ‘‘सुमित, कभी शिखा से ऐसे बात की जैसे तुम ने आज मुझ से करी है?’’

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मैं ने न में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘फिर हर समय इन लकीरों के खेल में उलझे रहना… पति न जाने क्यों अपनी पत्नियों को बेइंतहा प्यार करने के बावजूद उन्हें अपने दर्द से रूबरू नहीं करा पाते हैं. तुम पहले इंसान नहीं हो जो ऐसा कर रहे हो और न ही तुम आखिरी हो, पर सुमित तुम खुद इस के जिम्मेदार हो… इन लकीरों के खेल में तुम खुद उलझे हो… अपना सब से प्यारा दोस्त समझ कर यह बता रही हूं कि अपनी तुलना अगर दूसरों से करोगे तो खुद को कमतर ही पाओगे. सुमि, बड़ी लकीर अवश्य खींचो पर अपनी ही अतीत की छोटी लकीर के अनुपात में… तुम्हें कभी निराशा नहीं होगी. जैसे मछली जमीन पर नहीं रह सकती वैसे ही पंछी भी पानी में नहीं रह पाते. सुमि, शायद तुम एक मछली हो जो उड़ने की कोशिश कर रहे हो.

‘‘फिर बोलो गलती किस की है, तुम्हारी, शिखा या अनिल की?

‘‘दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इस से ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं…

‘‘शिखा की मां हो या तुम्हारी सब अपनेअपने ढंग से चीजों को देखेंगे पर यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम कैसे अपने रिश्ते निभाते हो.

‘‘जैसे एक बहू को शादी के बाद अपने नए परिवार में तालमेल बैठाना पड़ता है

वैसे ही एक पुरुष को भी शादी के बाद सब से तालमेल बैठाना पड़ता है पर इस बात को एक पति, दामाद अकसर नजरअंदाज कर देते हैं… अनिल से अपनी तुलना करने के बजाय उस से कुछ सीखो और मुझे यकीन है तुम्हारे अंदर भी ऐसे गुण होंगे जो अनिल ने तुम से सीखे होंगे. नकारात्मकता को अपने और शिखा के ऊपर हावी न होने दो. जैसे तुम खुद को देखोगे वैसे ही दूसरे लोग तुम्हें देखेंगे.

‘‘यह उम्मीद करती हूं कि अगली बार फिर कभी जीवन के किसी मोड़ पर टकरा गए तो फिर से अपने पुराने सुमि को देखना चाहूंगी,’’ कह भावना चली गई.

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मैं चुपचाप उसे सुनता रहा और फिर मनन करने लगा कि शायद भावना सही बोल रही है. लकीरों के खेल में उलझ कर मैं खुद ही हीनभावना से ग्रस्त हो गया हूं. शायद अब समय आ गया है हमेशा के लिए इस खेल को खत्म करने का पर इस बार अपनी शिखा को साथ ले कर मैं अपनी जिंदगी की एक नई लकीर बनाऊंगा बिना किसी के साथ तुलना कर के और फिर कभी भावना से टकरा गया तो अपनी जिंदगी के नए सफर की कहानी सुनाऊंगा.

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