कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मधुरा के मांबाप को उत्पल का ठेकेदार परिवार से होना नहीं सुहाया था. उन की नजर में ठेकेदारी गुंडों का काम था. मधुरा उन्हें समझाती रह गई कि अगर उत्पल को गुंडई ही दिखानी होती तो वह उसे कब का उठा कर ले गया होता. अपराधियों और पुलिस से ले कर जिले के नेताओं तक के बीच उस के बापदादा का बढि़या उठनाबैठना था.

एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क मधुरा के पिता उत्पल से कहां तक लड़ते? वैसे भी मधुरा के पिता पंडित थे और उत्पल पिछड़ी जाति का था और तभी वह ठेकेदारी का काम भलीभांति कर सकता था.

उत्पल दिल का बहुत अच्छा था. पढ़ाई के दिनों में कंप्यूटर हार्डवेयर ट्रेनिंग सैंटर में हुई मधुरा और उस की भेंट ने उन्हें देखतेदेखते कैसे जोड़ दिया, उन को खुद भी पता नहीं चला था. उस ने मधुरा को केवल मन से अपनाया था, तन से वे दोनों बिलकुल दूर थे, मगर मधुरा के पिता नहीं माने और उस की शादी अपने ही दफ्तर के एक साथी के बेटे विवेक से करा दी जो किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर था.

उत्पल छटपटा कर रह गया, लेकिन उस ने मधुरा की शादी में कोई खलल नहीं डाला. मधुरा ने अपनी मां की खुदकुशी की धमकी के चलते उत्पल से वादा जो ले लिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगा.

ससुराल आने के बाद मधुरा को विवेक का बरताव भी अच्छा लगने लगा. दिनभर के सीधेसरल स्वभाव और रात को बिस्तर पर मधुरा के जिस्म का तारतार झनझना देने वाला विवेक मधुरा को उस का बीता कल भुलाने में बहुत मददगार रहा था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...