जब से अंगरेजी के ‘परफौर्मैंस’ शब्द ने हिंदी के बाल पकडे़ हैं, तब से सड़क से ले कर संसद तक सब एकदूसरे से इस के सिवा कुछ और मांग ही नहीं रहे हैं. इस शब्द का मतलब चाहे पता हो या न हो, वे संसद में हर एक से ईमानदारी, देशभक्ति, त्याग, जनसेवा मांगने के बदले ‘परफौर्मैंस’ को मांगतेमांगते अपना गला सुखाए जा रहे हैं, तो घर में बाप अपने बेटे से ‘परफौर्मैंस’ पर ‘परफौर्मैंस’ मांगते हुए दिमागी बुखार किए जा रहा है, ‘‘अस्पताल में जब औक्सिजन नहीं मिलेगी, तो निकलेगी सारी हेकड़ी. देख बेटा, कुछ भी ले ले, पर मुझे ‘परफौर्मैंस’ चाहिए बस. जो करना है कर, जैसे करना है कर...’’
चाहे बेटा अपनी जवानी को दांव पर लगा कर बाप को कितना भी अच्छा कर के क्यों न दिखा दे, पर एक असंतुष्ट बाप है कि उस से रत्तीभर भी संतुष्ट नहीं होता है, ठीक पार्टी के बाप की तरह. उसे सबकुछ करने के बाद भी लग रहा है कि उस का बेटा और तो सबकुछ दे रहा है, पर ‘परफौर्मैंस’ वैसी नहीं दे रहा, जैसी उसे देनी चाहिए.
अरे बापजी, अब बेटे को मार डालोगे क्या? अरे भैयाजी, पार्टी वर्कर को अब मार डालोगे क्या? पार्टी में रह कर उन्हें भी कुछ खाने दो. हमाम में तनिक नंगा नहाने दो, वरना कल को हमाम ही बंद हो गए, तो नंगे नहाने की इच्छा मन में ही दबी रह जाएगी.
जनसेवक हो कर अपने बाथरूम में नंगे नहाए, तो क्या नहाए? नंगे नहाने का जो सामूहिक मजा हमाम में है, वैसा अकेले बाथरूम में नहाने में कहां? पार्टी के हिसाब से तनिक ढील दें, अपने हिसाब से थोड़ीबहुत ही सही, इन्हें भी जीने दो, खानेपीने दो. बंदा जब हराम की खाएगा, तभी तो पार्टी का झंडा शान से उठा कर चल पाएगा.