अपनी चहेती पत्रिका ‘सरस सलिल’ के पिछले सैकड़ों अंकों में आप ‘रोजगार’ स्तंभ के जरीए कई तरह के सस्ते व आसान धंधों की जानकारी हासिल कर के उन से फायदा उठा चुके होंगे. आज हम आप को सब से हट कर एक ऐसे धंधे या पेशे के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कि धर्मकर्म के नाम पर अपनी संतों की ‘पावन’ धरती पर सदियों से धड़ल्ले से चला आ रहा है. वह है, ज्योतिष का धंधा. कुछ संपादकीय नियमकायदों के तहत यह ‘रोजगार’ स्तंभ में न छप कर ‘मजाक’ स्तंभ में छापा जा रहा है. कृपया इस बात को अन्यथा न लें.

किसी भी धंधे को शुरू करने के लिए आप को एक मोटी रकम को धंधे में लगाने का जोखिम उठाना पड़ता है. सरकारी सेवा क्षेत्र में जाने से पहले तमाम तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं को ‘झेलना’ पड़ता है. चार्टर्ड अकाउंटैंट, वकील, डाक्टर, इंजीनियर वगैरह बनने के लिए बरसों तक हजारोंलाखों रुपए बहा कर मोटीमोटी किताबों से दिनरात माथापच्ची कर के आप कोई डिगरी अगर हासिल कर भी लेते हैं, तो आप 15-20 हजार रुपए महीने ही कमा पाते हैं.

इस के उलट ‘ज्योतिषाचार्य’ बनने के लिए आप को न तो ज्यादा रुपएपैसे खर्च करने की जरूरत है और न ही दिमाग की. बस, आप में बात करने की चालाकी व अंदाजा लगाने की लियाकत होनी चाहिए.

अगर आप शर्मीले मिजाज के हैं, तो हम आप को पहले ही बता देना चाहेंगे कि इस कमी की वजह से आप कभी भी इस क्षेत्र में कामयाबी हासिल नहीं कर पाएंगे. ज्योतिषी बनने से पहले शर्म छोड़ना उसी तरह बहुत जरूरी है, जिस तरह बीवी बनने के लिए मायके को छोड़ना.

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