जब वह बाबा गली से गुजर रहा था, तब रुक्मिणी उसे रोकते हुए बोलीं, ‘‘बाबा, जरा रुकना.’’
‘‘हां, अम्मांजी...’’ बाबा ने रुकते हुए कहा.
‘‘क्या आप हाथ देख कर सबकुछ सहीसही बता सकते हैं?’’ रुक्मिणी ने सवाल पूछा.
बाबा खुश हो कर बोला, ‘‘हां अम्मांजी, मैं तो ज्योतिषी हूं. मैं हाथ देख कर सबकुछ सचसच बता सकता हूं.’’
बाबा को अपने आंगन में बैठा कर रुक्मिणी अंदर चली गईं. तिलकधारी बाबा के गले में रुद्राक्ष की माला थी, बढ़ी हुई दाढ़ी, उंगलियों में न जाने कितने नगीने पहन खे थे. चेहरे पर चमक थी.
रुक्मिणी उस बाबा को देख भीतर ही भीतर खुश हुईं. आखिरकार बाबा बोला, ‘‘लाओ अम्मांजी, अपना हाथ दो.’’
‘‘मेरा हाथ नहीं देखना है बाबा.’’
‘‘तो फिर किस का हाथ देखना है?’’
‘‘मेरी बहू का.’’
‘‘क्यों, क्या हुआ है उसे?’’
‘‘शादी को 5 साल हो गए, मगर उस की कोख आज तक हरी नहीं हुई है.’’
‘‘ऐसी बात है क्या?’’
‘‘हां, बाबा.’’
‘‘अरे, माहिर डाक्टरों ने जिन औरतों को बांझ बता दिया है, उन की कोख भी मैं ने अपने मंत्रों से हरी की है,’’ बाबा के मुंह से जब यह सुना, तो रुक्मिणी मन ही मन खुश हो गईं और बाहर से ही आवाज देते हुए बोलीं, ‘‘बहू, जरा बाहर तो आना.’’
कुछ देर बाद बहू शीला बाहर आ कर बोली, ‘‘क्या बात है अम्मांजी?’’
‘‘देखो, ये बहुत पहुंचे हुए बाबा हैं...’’ रुक्मिणी समझाते हुए बोलीं, ‘‘इन को अपना हाथ दिखाओ.’’
‘‘अम्मांजी, हाथ दिखाने से क्या होगा?’’ बहू शीला ने सवाल उठाया.
‘‘अरे, तेरा हाथ देख कर बाबा बताएंगे कि तेरी कोख हरी होगी कि नहीं,’’ रुक्मिणी जरा नाराजगी से बोलीं, ‘‘तू पढ़ीलिखी हो कर बहस करती है. किसी बात पर यकीन नहीं करती है. अरे, इन बाबा ने कहा है कि इन्होंने तो बांझ औरतों को भी अपने मंत्रों से मां बना दिया है.’’
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