उतरती हुई गाड़ी फिर से पटरी पर आने लगी थी. एक परिवार ने अपने मुखिया के बिना जीने की कोशिशें शुरू कर दी थीं. मेघा को भी पिता की जगह उन के औफिस में नौकरी मिल गई. जिंदगी ने ढर्रा पकड़ लिया.