राममोहन पंचायत के जिला अध्यक्ष थे. उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनेक काम करवाए थे और हमेशा ही सरकार की नई योजनाओं को आम जनता तक पहुंचाने के लिए आगे रहते थे, इसलिए जनता के बीच उन की इमेज भी अच्छी थी.
60 साल की उम्र में भी खानेपीने के शौकीन राममोहन के चेहरे पर एक हलकी सी मुसकराहट हमेशा ही फैली रहती थी, पर यह मुसकराहट तब न जाने कहां गायब हो जाती थी, जब उन का सामना अपने एकलौते बेटे सुशील से होता था. उसे देखते ही वे मुंह घुमा लेते थे. इस मनमुटाव की वजह यह थी कि सुशील के 2 बेटियां ही थीं. राममोहन को अपने वंश के खत्म हो जाने का डर सता रहा था. सुशील अपने एक दोस्त के साथ मिल कर एक एनजीओ चलाता था, जो अनाथ बच्चों को आश्रय देने और उन की पढ़ाई वगैरह का खर्च चलाती थी.
पिछली 2 बार से जब भी सुशील की बीवी रीता को बच्चा ठहरा था, तो उस ने पेट में पल रहे भ्रूण के लिंग की जांच करवाई थी. पेट में पल रहा बच्चा लड़की है, यह जानने के बाद सुशील और रीता ने पेट गिरा दिया और समय बीतने के बाद कहीं न कहीं सुशील के मन में यह बात घर कर गई थी कि उस के अंदर लड़का पैदा करने की ताकत नहीं है. लिहाजा, अब सुशील खुश भी नहीं रह पाता था. शाम को जल्दी ही खाना खा कर चादर ओढ़ कर सो जाता, न बेटियों के साथ हंसनाखेलना और न ही रीता के साथ कोई बातचीत. पर आज पता नहीं कैसे उस ने रीता से उस का हालचाल पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है रीता, इतनी टैंशन में क्यों रहती हो आजकल?’’