कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

हम लोग राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली लगभग 10 बजे सुबह पहुंचे. हम ने सुबह ट्रेन में ही नाश्ता कर लिया था. हम 3 थे, मैं, मेरा दोस्त केयूर और अर्चिता. तीनों को दिल्ली में अलगअलग काम थे. मुझे इंगलैंड जाने के लिए वीजा बनवाना था, केयूर को एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंटरव्यू देना था और अर्चिता को जे.एन.यू. में एडमिशन के लिए आवेदन करना था.

अर्चिता के चाचा डाक्टर थे और सफदरजंग इनक्लेव में रहते थे, इसलिए उस का वहीं ठहरने का कार्यक्रम था. कर्नल के.के. सिंह की पत्नी वहीं एक कालिज में लेक्चरर थीं. कर्नल सिंह मेरे चाचा ब्रिगेडियर सिन्हा के जिगरी दोस्त थे. दोनों ने एकसाथ कालिज की पढ़ाई की थी. मेरे चाचा इस समय लद्दाख में तैनात थे.

मैं कर्नल के.के. सिंह को बचपन से जानता हूं. पटना मेरे चाचा के यहां वह अकसर आते थे और कई दिनों तक ठहरते थे. मैं जब मेडिकल कालिज में पढ़ता था तो अपने चाचा के यहां अकसर जाता था. मेरी छुट्टियां लगभग वहीं बीतती थीं. इसलिए मैं कर्नल साहब को बहुत नजदीक से जानता था. पहले भी दिल्ली आने पर कई बार उन के यहां ठहरा था.

स्टेशन पर उतर कर हम ने प्लान बनाया कि अर्चिता को प्रीपेड टैक्सी में बिठा कर सफदरजंग भेज देंगे और फिर आटोरिकशा पकड़ कर हम कर्नल साहब के यहां चले जाएंगे. उन से फोन पर बात हो चुकी थी.

लेकिन जब हम अपना सामान ले कर गाड़ी से प्लेटफार्म पर उतरे तो देखा कि कर्नल साहब हाथ हिलाते हुए हम लोगों की ओर आ रहे हैं.

हम लोगों ने उन्हें नमस्कार किया फिर मैं ने केयूर और अर्चिता का उन से परिचय कराया और कहा, ‘‘अंकल, हम लोग तो आ ही जाते. आप इतनी दूर क्यों आए?’’

‘‘वौट नानसेंस, आज संडे है, कोई काम नहीं है. केवल दोपहर को क्लब जाना है, मीटिंग है. तब तक एकदम फ्री हूं. इसी बहाने सैर हो गई.’’

कर्नल के.के. सिंह ने केयूर और अर्चिता को गंभीर हो कर गौर से देखा, फिर मुसकराए और बोले, ‘‘एक्सिलेंट, स्मार्ट हैंडसम बौय, ब्यूटीफुल गर्ल.’’

उस के बाद कर्नल सिंह ने आगे बढ़ कर सब इंतजाम टेकओवर कर लिया. तुरंत कुली बुलवाया, अपनी कार में सामान रखवाया, कुली को भुगतान किया. हम लोगों ने जब इस का विरोध किया तो हमें डांटते हुए बोले, ‘‘कम आन, गेट इन. मेरा भतीजा है, पेमेंट करेगा?’’ कौन कहां बैठेगा? इस पर वह बोले, ‘‘शमीक, तुम शादीशुदा हो इसलिए आगे बैठोगे, और तुम दोनों पीछे.’’

जब अर्चिता ने कहा कि उसे नजदीक ही तो जाना है, टैक्सी ले लेगी तो उन्होंने चेहरे पर गंभीर भाव लाते हुए उसे कार के अंदर बैठा कर कार स्टार्ट करते हुए कहा, ‘‘नो, मैं कभी अलाउ नहीं कर सकता, मेरी जिंदगी का सिद्धांत है और मैं उसे कभी तोड़ नहीं सकता.’’

अर्चिता ने पूछा, ‘‘कैसा सिद्धांत सर?’’

कर्नल साहब गाड़ी निकालते हुए हंस कर बोले, ‘‘मैं कभी भी खूबसूरत, स्मार्ट लड़की को अकेले नहीं जाने देता.’’

अर्चिता के चाचा के घर पहुंच कर हम ने बाहर से ही विदा मांगी तो उस ने औपचारिकतावश कहा, ‘‘आइए, चाय पी कर जाइए, चाचाचाची से भी मिल लीजिएगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘फिर कभी, अब देर हो गई है.’’

लेकिन तब तक कर्नल साहब गाड़ी से उतर कर, शीशा चढ़ा कर गाड़ी लाक कर के तैयार हो गए थे, ‘‘हांहां, चलो, एक कप चाय हो जाए और तुम्हारे चाचाचाची से भी मिल लेंगे. उन्हें भी तसल्ली हो जाएगी कि हम जैसे भले आदमियों ने उन की इतनी खूबसूरत भतीजी को सही- सलामत घर तक पहुंचा दिया है.’’

मैं तो उन को मुंहबाए खड़ा देखता रह गया. तब तक वे अर्चिता के साथ आगे बढ़ गए. कर्नल साहब, अर्चिता के चाचाचाची से बेहद गरमजोशी से मिले. चाय पीतेपीते उन्होंने उन दोनों पर भी पूरी तरह कब्जा कर लिया था. तरहतरह के किस्से सुनाते रहे और केयूर की तारीफ करते रहे. मैं आश्चर्य से सबकुछ सुनता रहा. जिस शख्स से वह आज पहली बार मिले हैं उस के बारे में यों बात कर रहे थे मानो बचपन से जानते हों. फिर अर्चिता की तारीफ करते हुए उन्होंने चाचाचाची को समझा दिया कि वह उन की भतीजी के लिए एवन लड़का लाएंगे, नो तिलक, नो दहेज, सबकुछ मुझ पर छोड़ दीजिए.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...