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‘‘मेरी अम्मी 2 बजे उठ कर लालटेन को रोशनी में चश्मा लगा कर बीड़ी बनाने के लिए पत्ते काटती हैं और पत्ते काटतेकाटते फज्र की नमाज का समय हो जाता है. फिर वह पत्ते काट कर उसे जमने के लिए सुतली वाले बोरे में बांध कर नमाज पढ़ने चली जाती है.’’ मैं ने फिर पूछा था, ‘‘यह जमना क्या होता है?’’ ‘‘जमना मतलब मुलायम होना, ताकि पत्तों को बीड़ी के जैसे लपेटने में आसानी हो,’’ उस ने बताया था. मैं उस की बात नहीं समझ पाया था, यह उस ने मेरे चेहरे से जान लिया तो फिर उस ने मुझे ठीक वैसे ही समझाया जैसे उस के भैया मुझे गणित समझाते थे. ‘‘इसे ऐसे समझो कि पत्ते काटने के बाद उसे और भी मुलायम होने के लिए मतलब एक बीड़ी वाले की जबान में इसे पत्ते का जमना कहते हैं. सुतली वाले बोरे को एक खास तरीके से बस्ता बना कर उसे पानी से हलका भिगो कर बांधा जाता है. पानी भी एक जरूरत के हिसाब से ही देना होता है.

कम पानी देने से पत्ते रूखे रह जाते हैं और ज्यादा पानी देने से पत्ते में चित्ती लग जाती है मतलब फफूंद लग जाती है.’’ उस के इस तरह बताने से पता चल रहा था कि बीड़ी का कारोबार उस के खून में है. मैं ने फिर पूछा था, ‘‘इतनी सवेरे जाग कर तुम क्या करते थे?’’ ‘‘मैं वहीं पर लेट कर कहानियों की किताबें पढ़ कर अपनी अम्मी को सुनाया करता था,’’ यह कहतेकहते वह उदास हो गया था, मानो जैसे अब रो ही देगा. ‘‘तुम तो वापस उसी अंधेरे वाली दुनिया में जा रहे हो और अब आओगे भी नहीं,’’ मैं आज बस उसे ही सुनना चाहता था. ‘‘हां दोस्त...’’ पहली बार उस ने मुझे दोस्त कह कर बुलाया था. फिर एक गहरी सांस ले कर वह कहने लगा था, ‘‘जिस वजह से मैं यहां आया था, वह तकरीबन पूरी तो हो गई है, पर...’’ ‘‘पर क्या...?’’ उस ने फिर बात अधूरी छोड़ दी तो मैं ने पूछा था.

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