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लेखक- कमला घटाऔरा

और वह दीप्ति से मिसेज शर्मा के बारे में जानने की जिज्ञासा को दबा न सकी. कहते हैं परिवर्तन ही जिंदगी है. सबकुछ वैसा ही नहीं रहता जैसाआज है या कल था. मौसम के हिसाब से दिन भी कभी लंबे और कभी छोटे होते हैं पर उन के जीवन में यह परिवर्तन क्यों नहीं आता? क्या उन की जीवन रूपी घड़ी को कोई चाबी देना भूल गया या बैटरी डालना जो उन की जीवनरूपी घड़ी की सूई एक ही जगह अटक गई है. कुछ न कुछ तो ऐसा जरूर घटा होगा उन के जीवन में जो उन्हें असामान्य किए रहता है और उन के अंदर की पीड़ा की गालियों के रूप में बौछार करता रहता है.

मैं विचारों की इन्हीं भुलभुलैयों में खोई हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो,’’ मैं ने रिसीवर उठाया.

‘‘हाय प्रीत,’’ उधर से चहक भरी आवाज आई, ‘‘क्या कर रही हो...वैसे मैं जानती हूं कि तू क्या कर रही होगी. तू जरूर अपनी स्टडी मेज पर बैठी किसी कथा का अंश या कोई शब्दचित्र बना रही होगी. क्यों, ठीक  कहा न?’’

‘‘जब तू इतना जानती है तो फिर मुझे खिझाने के लिए पूछा क्यों?’’ मैं ने गुस्से में उत्तर दिया.

‘‘तुझे चिढ़ाने के लिए,’’ यह कह कर हंसती हुई वह फिर बोली, ‘‘मेरे पास बहुत ही मजेदार किस्सा है, सुनेगी?’’

मेरी कमजोरी वह जान गई थी कि मुझे किस्सेकहानियां सुनने का बहुत शौक है.

‘‘फिर सुना न,’’ मैं सुनने को ललच गई.

‘‘नहीं, पहले एक शर्त है कि तू मेरे साथ पिक्चर चलेगी.’’

‘‘बिलकुल नहीं. मुझे तेरी शर्त मंजूर नहीं. रहने दे किस्साविस्सा. मुझे नहीं सुनना कुछ और न ही कोई बकवास फिल्म देखने जाना.’’

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