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वापस लौट कर शर्मिला ने अपनी मां को फोन मिलाया और मनाली यात्रा के संस्मरण सुनाने लगी. हैरानपरेशान सा समीर दौड़भाग में जुटी अपनी मां को देखता, तो कभी पसीनेपसीने हो रही नंदिनी मौसी को. लेकिन पलंग पर आराम फरमाती शर्मिला को किसी से सरोकार न था.

दोपहर के 2 बज चुके थे. नंदिनी मौसी चौके में लंच तैयार कर रही थीं. शर्मिला ने उठ कर खाना खाया. फिर समीर को टैक्सी बुक करने के लिए कहा.

‘कहां जाना है?’

‘मां के पास.’

‘कल चली जाना, फिलहाल सफर की थकान तो उतार लो.’

‘2-3 घंटे में आ जाऊंगी समीर, मां की बहुत याद आ रही है.’

उस ने बच्चों की तरह मचल कर कहा, तो समीर ने टैक्सी बुक कर दी.

2 घंटे को कह कर शर्मिला जब रात तक वापस नहीं लौटी तो समीर ने फोन घुमा दिया, ‘कल शाम मां और पापा मेरठ जा रहे हैं. उन के जाने से पहले लौटने की कोशिश करना.’

‘यों अचानक...?’

‘पापा के बौस ने फोन किया था, इसीलिए अचानक प्रोग्राम बन गया.’

‘तो पापा अकेले चले जाएं.’

‘काफी दिन हो गए मां को भी घर छोड़े हुए, जाना जरूरी है, पता नहीं वहां भी घर किस हाल में होगा.’

‘कुछ दिन उन के साथ रह लेती, तो अच्छा लगता,’ उस ने अतिरिक्त मीठे स्वर में समीर से कहा.

तभी, पीछे से उस की मां और बहनों का स्वर सुनाई दिया, ‘इतनी खुशामद करेगी तो सिर पर चढ़ कर बैठ जाएंगे तेरे घर वाले. जाती हैं तो जाएं.’

‘खुशामद करूंगी, तभी तो समीर पल्लू से बंधा रहेगा.’

समीर ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया. 2 दिनों बाद शर्मिला वापस लौटी तो समीर का मूड उखड़ा हुआ था. शर्मिला ने बेपरवाही से अपना सामान व्यवस्थित किया, मैले कपड़े बाहर आंगन में नल के पास रखे और रिमोट उठा कर टीवी का स्विच औन कर के अपना मनपसंद सीरियल देखने लगी. बाहर निकली तो पटरे पर धुलने के बाद निचुड़े हुए कपड़े रखे थे. उस ने पैर से उन्हें नीचे गिरा दिया.

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