उर्मिला देवी बाथरूम में बेसुध पड़ी थीं. शाम में छोटी बहू कुसुम औफिस से आई और सास के कमरे में चाय ले कर गई तो देखा कि वे बेहोश हैं. कुसुम घबरा गई. तुरंत पति को फोन किया. पति और जेठ दौड़ेदौङे आए.
"जरूर दोपहर में नहाते वक्त मां का पैर फिसल गया होगा और सिर लोहे के नल से टकरा गया होगा," छोटे बेटे ने कहा.
"पर अभी सांस चल रही है. जल्दी चलो अमन, हम मां को बचा सकते हैं. कुसुम तुम जा कर जरा ऐंबुलैंस वाले को फोन करो. तब तक हम मां को बिस्तर पर लिटाते हैं."
"हां मैं अभी फोन करती हूं," घबराई हुई कुसुम ने तुरंत ऐंबुलैंस वाले को काल किया.
आननफानन में मां को पास के सिटी हौस्पिटल ले जाया गया. उन्हें तुरंत इमरजैंसी में ऐडमिट कर लिया गया. ब्रैन हेमरेज का केस था. मां को वैंटीलेटर पर आईसीयू में रखा गया. तब तक बड़ी बहू मधु भी औफिस से अस्पताल आ गई. उस के दोनों लड़के ट्यूशन के बाद घर पहुंच गए थे.
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कुसुम की बिटिया मां के साथ ही हौस्पिटल में थी. सबकुछ इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ सोचने का अवसर ही नहीं मिला था.
आज से करीब 20 साल पहले उर्मिलाजी पति कुंदनलाल और 2 बेटों के साथ इस शहर में आई थीं. उन्होंने कामिनी कुंज कालोनी में अपना घर खरीदा था. यह एक पौश कालोनी थी. आसपड़ोस भी अच्छा था. जिंदगी सुकून से गुजर रही थी. पर करीब 15 साल पहले कुंदनलाल नहीं रहे. तब उर्मिलाजी ने बखूबी अपना दायित्व निभाया. दोनों बेटों को अच्छी शिक्षा दिलाई. वे खुद सरकारी नौकरी में थीं. पैसों की कमी नहीं थी. उन्होंने घर को बड़ा करवाया. 2 फ्लोर और बनवा लिए. फिर अच्छे घरों में बेटों की शादी करा दी.