लखिका -Sakshi Sharma

सीमा रविवार की सुबह देर तक सोना चाहती थी, लेकिन उस के दोनों बच्चों ने उस की यह इच्छा पूरी नहीं होने दी.

‘‘आज हम सब घूमने चल रहे हैं. मुझे तो याद ही नहीं आता कि हम सब ने छुट्टी का कोई दिन कब एकसाथ गुजारा था,’’ उस के बेटे समीर ने ऊंची आवाज में शिकायत की.

‘‘बच्चो, इतवार आराम करने के लिए बना है और...’’

‘‘और बच्चो, हमें घूमनेफिरने के लिए अपने मम्मी पापा को औफिस से छुट्टी दिलानी चाहिए,’’ शिखा ने अपने पिता राकेशजी की आवाज की बढि़या नकल उतारी तो तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े.

‘‘पापा, आप भी एक नंबर के आलसी हो. मम्मी और हम सब को घुमा कर लाने की पहल आप को ही करनी चाहिए. क्या आप को पता नहीं कि जिस परिवार के सदस्य मिल कर मनोरंजन में हिस्सा नहीं लेते, वह परिवार टूट कर बिखर भी सकता है,’’ समीर ने अपने पिता को यह चेतावनी मजाकिया लहजे में दी.

‘‘यार, तू जो कहना चाहता है, साफसाफ कह. हम में से कौन टूट कर परिवार से अलग हो रहा है?’’ राकेशजी ने माथे पर बल डाल कर सवाल किया.

‘‘मैं ने तो अपने कहे में वजन पैदा करने के लिए यों ही एक बात कही है. चलो, आज मैं आप को मम्मी से ज्यादा स्मार्ट ढंग से तैयार करवाता हूं,’’ समीर अपने पिता का हाथ पकड़ कर उन के शयनकक्ष की तरफ चल पड़ा.

सीमा को आकर्षक ढंग से तैयार करने में शिखा ने बहुत मेहनत की थी. समीर ने अपने पिता के पीछे पड़ कर उन्हें इतनी अच्छी तरह से तैयार कराया मानो किसी दावत में जाने की तैयारी हो.

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