कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘क्यों?’’ नरेश ने चौंक कर कहा.

दूसरी तरफ से कई लोगों के खिल- खिलाने की आवाजें आईं, ‘‘जीजाजी… जीजाजी.’’

नरेश ने माथा पीट लिया. उर्मिला फोन करने पास की एक दुकान पर जाती थी. वह प्रति फोन 1 रुपया लेता था. सड़क पर आवाजें काफी आती थीं, इसलिए जोरजोर से बोलना पड़ता था. नरेश ने कह रखा था कि जब तक एकदम आवश्यक न हो यहां से फोन न करे. सब लोग दूरदूर तक सुनते हैं और मुसकराते हैं. उसे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था और उस समय तो वहां पूरी बरात ही खड़ी थी. वह सोचने लगा, दुनिया भर को मालूम हो जाएगा कि वह पलटन के साथ फिल्म देखने जा रहा है. और तो और, ये सालियां क्या हैं एक से एक बढ़ कर पटाखा हैं, इन्हें फुलझडि़यां कहना तो इन का अपमान होगा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर उस ने फोन पटक दिया. आगे बात करने का अवसर ही नहीं दिया. रूमाल निकाल कर माथे का पसीना पोंछने लगा. उसे याद था कि कैसे बड़ी कठिनाई से उस ने उर्मिला को टरकाया था, जब वह सब सालियों समेत दफ्तर आने की धमकी दे रही थी.

2 जने जाते तो 14 रुपए के टिकट आते. अब पूरे 42 रुपए के टिकट आएंगे. सालियां आइसक्रीम और पापकार्न खाए बिना नहीं मानेंगी. वैसे तो वह स्कूटर पर ही जाता, पर अब पूरी टैक्सी करनी पड़ेगी. उस का भी ड्योढ़ा किराया लगेगा. उस ने मन ही मन ससुर को गाली दी. घर में अच्छीखासी मोटर है. यह नहीं कि अपनी रेजगारी को आ कर ले जाएं. उसे स्वयं ही टैक्सी कर के घर छोड़ने भी जाना होगा. अभी तो महीना खत्म होने में पूरे 3 सप्ताह बाकी थे.

सालियां तो सालियां ठहरीं, पूरी फिल्म में एकदूसरी को कुहनी मारते हुए खिलखिला कर हंसती रहीं. आसपास वालों ने कई बार टोका. नरेश शर्म के मारे और कभी क्रोध से मुंह सी कर बैठा रहा. उस का एक क्षण भी जी न लगा. जैसेतैसे फिल्म समाप्त हुई तो वह बाहर आ कर टैक्सी ढूंढ़ने लगा.

‘‘सुनो,’’ उर्मिला ने कहा.

‘‘अब क्या हुआ?’’

‘‘देर हो गई है. इन्हें खाना खिला कर भेजूंगी. घर में तो 2 ही जनों का खाना है. होटल से कुछ खरीद कर घर ले चलें.’’

बड़ी साली ने इठला कर कहा, ‘‘जीजाजी, आप ने कभी होटल में खाना नहीं खिलाया. आज तो हम लोग होटल में ही खाएंगे. दीदी घर में कहां खाना बनाती फिरेंगी?’’

बाकी की सालियों ने राग पकड़ लिया, ‘‘होटल में खाएंगे. जीजाजी, आज होटल में खाना खिलाएंगे.’’

नरेश सुन्न सा खड़ा रहा

उर्मिला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, शोर क्यों मचाती हो?’’ और फिर नरेश की ओर मुंह कर के बोली, ‘‘सुनो, आज इन का मन रख लो.’’

नरेश ने जेब की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘रुपए हैं पास में? मेरे पास तो कुछ नहीं है.’’

उर्मिला ने पर्स थपथपाते हुए कहा, ‘‘काम चल जाएगा. यहीं ‘चाचे दा होटल’ में चले चलेंगे.’’

जब तक खाना खाते रहे पूरी फिल्म के संवाद दोहरादोहरा कर सब हंसी के मारे लोटपोट होते रहे. और जो लोग वहां खाना खा रहे थे वे खाना छोड़ कर इन्हें ही विचित्र नजरों से देख रहे थे. नरेश अंदर ही अंदर झुंझला रहा था.

टैक्सी में बिठा कर जब वह उन्हें घर छोड़ कर वापस आया तो उस ने उर्मिला से पूरा युद्ध करने की ठान ली थी. परंतु उस के खिलखिलाते संतुष्ट चेहरे को देख कर उस ने फिलहाल युद्ध को स्थगित रखने का ही निश्चय किया.

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...