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लेखक- सिराज फारूकी

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : अकील अपने 2 बच्चों और खूबसूरत पत्नी मुबीना के साथ रह रहा था. उस की किराने की छोटी सी दुकान थी. चूंकि आमदनी कम थी, इसलिए मुबीना के कहने पर वह अपने जिगरी दोस्त तौफीक के भरोसे अपने परिवार को छोड़ कर कामधंधे के लिए सऊदी अरब चला गया. धीरेधीरे मुबीना और तौफीक में जिस्मानी रिश्ता बन गया. इसी बीच अकील ने भारत लौटने की सोची तो मुबीना की चिंता बढ़ गई.  अब पढि़ए आगे…

‘‘सोतो है…’’ तौफीक ने एक बार फिर मुबीना के नंगे शरीर पर चिकोटी काटी. वह उस दर्द को पी गई.

‘अच्छा फोन रखता हूं… कंपनी भी अब बंद होने वाली है. बहुत गड़बड़ चल रही है… देखते हैं, आगे क्या होता है…?’ अकील बोला.

‘‘तो चले आओ न…’’ तौफीक ने बेदिली से कहा.

‘यही तो सोच रहा हूं… यह बात तुम मुबीना से मत कहना, वरना उसे दुख होगा…’

‘‘हां… शायद…?’’ वह मुबीना की तरफ देख कर मुसकराया.

फोन कट गया. फोन बंद होने के बाद तौफीक हंसते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे शौहर का फोन था रानी साहिबा…’’ और उस ने शरारत से उस के गालों को खींच लिया.

‘‘क्या कहा उन्होंने…?’’ मुबीना ने सवाल किया.

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‘‘वह कह रहा था कि मेरी बीवी का खूब खयाल रखना…’’

‘‘तो तुम ने क्या कहा?’’

‘‘यही कि खयाल ही रख रहा हूं…’’

‘‘अच्छा खयाल रख रहे हैं…’’ मुबीना उसे चूमते हुए बोली.

थोड़ी देर बाद मुबीना का मोबाइल फोन बज उठा. अकील का फोन था.

तौफीक बोला, ‘‘लगता है, आज यह चैन से रहने नहीं देगा…’’

मुबीना ने फोन उठा लिया.

उधर से कुछ दर्द और खुशी में मिलीजुली आवाज आई, ‘हैलो मेरी रानी, कैसी हो…?’

‘‘पूछो मत…’’ वह तौफीक के दबाव से कराहते हुए बोली और उसे अपने ऊपर से धकेलने की नाकाम कोशिश की लेकिन उस ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी.

अकील बोला, ‘मेरी याद आ रही है…?’

‘‘क्यों नहीं जी…’’

‘जाग रही हो अभी तक…’

‘‘हां, आप की यादों में करवटें बदल रही हूं… फोटो के सहारे…?’’

अकील हंसा, ‘फोटो के सहारे…’’ और उसे जैसे मजाक सूझा. उस ने कहा, ‘अरे मेरा दोस्त है न तौफीक… वह किस दिन काम देगा. बुलवा लिया होता…’

मुबीना को काटो तो खून नहीं. उस के दिल पर घूंसा सा लगा. उस ने सोचा ‘क्या अकील को पता चल गया है?’ मुबीना के दिल में आया कि कह दे, बुलवा लिया है. लेकिन उस ने कहा, ‘‘क्या गंदा मजाक करते हैं आप भी…’’

‘हाहा… तुम सही मान गई क्या…?’

‘‘नहीं…’’ मुबीना ने कहा, ‘‘सोचो, अगर ऐसा हो गया तो…?’’

‘मार डालूंगा उसे…’ अकील ने गुस्सा दिखाया.

‘‘और मुझे…?’’ मुबीना ने सवाल उठाया.

‘तुझे तो जिंदा दफन कर दूंगा…’ उस का लहजा सख्त था.

मुबीना सहम सी गई.

‘बीवी शौहर की अमानत होती है. उसे हर हालत में अपनी आबरू बचा कर रखनी चाहिए…’

‘‘बचा कर रखूंगी… आप बेफिक्र रहिए…’’ मुबीना सहम कर बोली.

‘हां, मुझे यही उम्मीद है. मैं तो बात की बात कर रहा था.’

‘‘ठीक है… कोई बात नहीं…’’

‘अच्छा, फोन रखूं…?’

‘‘हां… रखिए…’’

‘अपना और बच्चों का खयाल रखना. और हां, रकम की जरूरत पड़े तो तौफीक को भी दे देना. पहले तो वह मांगेगा नहीं. अगर मांगे तो मना मत कहना…’

अकील ने दुख भरे लहजे में कहा, ‘मुबीना, मैं जिस कंपनी में काम कर रहा था. वह बहुत जल्द बंद होने वाली है… अब मेरा भी दिल यहां नहीं लगता है… सोचता हूं, वतन चला आऊं… तुम्हारे पास आने को दिल हर घड़ी मचलता रहता है…’

‘‘मत आओ…’’ मुबीना हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अभी कितने प्रोजैक्ट अधूरे हैं. अगर तुम वापस आ गए तो सब अधूरा रह जाएगा… अगर वह कंपनी बंद हो रही है, तो कहीं और काम तलाश करो. ज्यादा नहीं, बस 1-2 साल और रह लो. उस के बाद आ जाओ. मैं तुम्हारी हूं. कहीं भागी थोड़ी जा रही हूं. कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है.’’

‘सो तो ठीक है रानी…’ वह कुम्हलाई हुई आवाज में बोला, ‘कोशिश करता हूं. मगर मुमकिन नहीं लगता है…’ और सर्द आह भर कर वह बोला, ‘मुबीना, मेरी रानी… तुम्हारी याद बहुत सताती है…’

मुबीना हलके से सिसकी. पता नहीं, तौफीक के शरीर का दबाव था या कुछ और ही. मगर यह सिसकी इतनी धीमी थी कि मोबाइल से आवाज अकील तक नहीं पहुंच पाई.

अकील ने सवाल किया, ‘मुबीना, तुम पहले से और हसीन हो गई हो या…?’

मुबीना मुसकरा पड़ी, ‘‘आ कर देख लेना…’’

‘बता दो न…’ उस ने जैसे बाल हठ किया.

‘‘हूं…’’ मुबीना ने तौफीक के दबाव को कम करने की कोशिश की. अकील समझा शरमा रही है.

फोन कट गया.

मुबीना का मूड खराब हो चुका था. उस ने तौफीक से कहा, ‘‘लगता है, वह आएगा…’’

तौफीक ने कहा, ‘‘उसे रोको…’’

‘‘वही तो कोशिश कर रही थी…’’

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‘‘वह आएगा तो हमारा काम बिगड़ जाएगा…’’

‘‘शायद…?’’

फिर थोड़ा गंभीर होते हुए मुबीना ने कहा, ‘‘लगता है… अब हम को यह खेल बंद कर देना चाहिए…’’

‘‘नामुमकिन…’’ तौफीक ने कहा.

‘‘क्यों…?’’ वह झुंझला सी गई.

‘‘मैं तुम को भूल नहीं पाऊंगा…’’

‘‘वही हाल तो अब अपना भी है… तुम्हारे बगैर नींद नहीं आती है… जिस्म को चैन नहीं मिलता है…’’

‘‘तो फिर क्या होगा…?’’

‘‘तुम उसे तलाक दे दो…’’

‘‘नामुमकिन…’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘आखिर कोई तो वजह हो…’’

‘‘निकालो न…’’ तौफीक ने उस की नाक को पकड़ कर हिलाया और कहा, ‘‘तुम औरत हो… कहते हैं औरत के पास त्रिया चरित्र होता है…’’

‘‘होगा किसी और के पास… लेकिन मेरे पास नहीं है…’’

तौफीक ने सिर पकड़ लिया, ‘‘बड़ा गंभीर मसला है…’’

और फिर दोनों करवट बदल कर लेट गए. लेटेलेटे तौफीक ने कहा, ‘‘इस नए फ्लैट का उद्घाटन तो महंगा पड़ा…’’

‘‘हां…’’ मुबीना ने उस के पीछे से लिपट कर कहा, ‘‘इश्क में अड़ंगा लग गया…’’

कुछ पल के बाद जैसे मुबीना को मजाक सूझा, उस ने उसे अपनी ओर खींचते हुए उस के सीने पर सिर रख कर कहा, ‘‘आखिर दोस्त की बीवी को कब तक खाओगे…?’’

‘‘जब तक जिंदा रहूंगा…’’ तौफीक ने ढिठाई से जवाब दिया और झपट कर उसे अपनी बांहों में भींच लिया.

मुबीना ने चुहल करने के अंदाज में कहा, ‘‘हराम का माल खाने का मजा ही कुछ और है…क्यों?’’

‘‘हां, फिर…’’ तौफीक बेशर्मी से मुसकराया.

‘‘एक बात बताओ… तुम्हें शर्म आती है…’’

‘‘नहीं…’’ तौफीक उस के गालों को नीबू के जैसे निचोड़ते हुए बोला, ‘‘तुम को आती है…?’’

‘‘हां…’’

वह उसे घूरने लगा था.

मुबीना कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘थोड़ीथोड़ी…’’

‘‘बड़ी बेशर्म हो…’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘शौहर के दोस्त के साथ ऐयाशी करती हो…’’

मुबीना कुछ नाराज होते हुए बोली, ‘‘और तुम को नहीं आती, तो दोस्त की बीवी के साथ गुलछर्रे उड़ाते हो…’’

तौफीक ने उस की बातों का कोई जवाब नहीं दिया और उस का सिर पकड़ कर जोरों से अपने में समाने लगा. उस के बाद हवस तूफान में ऐसे गोते खाने लगा, जैसे फिर मिलें या न मिलें. शायद दोनों का एक ही हाल था.

मुबीना आज कई दिनों से सोचविचार कर रही थी. उसे यह रिश्ता रखना चाहिए या नहीं? धीरेधीरे उस का ध्यान उन सब औरतों की ओर चला गया, जिन के शौहर परदेश में हैं. कैसे अपनी इज्जत की हिफाजत करती हैं? क्या वे मेरी ही तरह ढोंग रचाती हैं तो कोई बात नहीं. लेकिन नहीं रचातीं तो…?

मगर, मैं ऐसा नहीं कर सकी. मैं कितनी कमजोर औरत हूं. क्या मैं रुक सकती थी? आखिर इस में गुनाहगार कौन है? तौफीक या वह या मैं? कौन ज्यादा कुसूरवार है?

वह इस नतीजे पर पहुंची कि सब से ज्यादा उस का शौहर ही कुसूरवार है, जो इतने दिनों से परदेश में पड़ा है. मैं ने लाख मना किया, मगर उसे आना चाहिए था. भूखीप्यासी अगर बकरी है तो रस्सी जरूर तुड़ाएगी और अगर तुड़ा कर सामने का हरा चारा खा लिया तो कुसूर किस का है? हरे चारे का या खाने वाले का?

मेरा खयाल है घर मालिक का, जिस ने अपने जानवर को भरपेट चारा नहीं खिलाया. बस एक बार नांद में चारा डाल दिया और रफूचक्कर हो गया.

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आखिरकार मुबीना इस नतीजे पर पहुंची कि उसे यह रिश्ता नहीं रखना चाहिए. अभी वक्त है. कुछ बिगड़ा नहीं है. कितनी ऐसी औरतों और लड़कियों को वह जानती है, जो शादी से पहले और बाद में बहक गई थीं. मगर छुपा ले गई और आज इज्जतदार औरत बन कर समाज के सिंहासन पर बैठी शान से राज कर रही हैं.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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