हमीदा के 3 बच्चे थे. बड़ी बेटी 18 साल की थी. उस के निकाह की बात चल रही थी. बेटा 16 साल का था और सब से छोटी बेटी 12 साल की. हमीदा पढ़ी लिखी नहीं थी. देखने में खूबसूरत थी. माता पिता गरीब थे, इसलिए प्रिंटिंग प्रैस में काम करने वाले मुस्तफा से उस का निकाह कर दिया गया था.
हमीदा सोच रही थी कि बड़ी बेटी का निकाह हो जाए, तो वह आराम से दोनों बच्चों के अपने पैरों पर खड़ा होने के बाद ही उन की शादी करेगी. इस बीच हमीदा की मां की तबीयत खराब रहने लगी. एक दिन वह अपनी मां को देखने गई, तो वहां रात को उसे रुकना पड़ा.
मुस्तफा को यह सब पसंद नहीं आया. यह बात पता चलते ही वह लड़नेझगड़ने लगा. बड़ी बेटी ने फोन कर के कहा, ‘‘अब्बू बहुत गुस्से में हैं. आप जल्दी चली आओ.’’
हमीदा कभी अपनी बीमार मां की तरफ देख रही थी, तो कभी उसे शौहर के गुस्सा होने का डर लग रहा था. इस के बाद भी उस ने मां के पास ही रुकने की सोची. रात के तकरीबन 11 बज रहे थे. मुस्तफा का फोन आया. हमीदा ने बताया कि मां की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. वह कुछ दिन उन की खिदमत करना चाहती है.
यह बात सुन कर मुस्तफा को गुस्सा आ गया. उस ने फोन पर ही एकसाथ 3 बार ‘तलाक तलाक तलाक’ बोल कर कहा कि वह उसे तलाक दे रहा है. अब वह आराम से अपनी मां के साथ रहे.
‘तलाक’ के ये 3 शब्द सुन कर हमीदा के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई. एक तरफ मां की खराब तबीयत थी, तो दूसरी ओर परिवार का बोझ. पति ने तलाक दे दिया था. वह अगले दिन सुसराल गई. वहां पति और उस के परिवार वालों ने उसे घर में घुसने नहीं दिया.