पाकिस्तान से सटी भारत की पश्चिमी सरहद पर पहरे के लिए हम सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ और ‘रेगिस्तान के जहाज’ ऊंट पर निर्भर हैं, लेकिन हमारी बीएसएफ को कमजोर करने के लिए पिछले कुछ सालों से ऊंटों को खत्म करने की साजिश चल रही है.

इस सदी की शुरुआत में देश में 10 लाख ऊंट थे, जो अब साढ़े 3 लाख ही बचे हैं. यही वजह है कि कई इंटरनैशनल एजेंसियां तो औपचारिक रूप से भारतीय ऊंट को लुप्त होती प्रजाति घोषित कर चुकी हैं.

यह बात भी गौर करने लायक है कि क्या इस मामले में बड़े पैमाने पर विदेशी ताकत का हाथ है, जो हमारे देश में अपने लोगों के जरीए बहुत ही सोचीसमझी चाल के तहत हमारे देश के रक्षा तंत्र को कमजोर करने में लगी हैं, ताकि वे आसानी से देश में घुस सकें?

बीएसएफ केवल लड़ाई ही नहीं लड़ती, बल्कि उसे घुसपैठियों से भी निबटना होता है. सरहद पर हथियारों और नशीली चीजों की तस्करी होना तो आम बात है.

गुजरात और राजस्थान से लगती पाकिस्तान की सरहद तकरीबन 1,040 किलोमीटर लंबी है. जहां तक राजस्थान का सवाल है, तो यहां मीलों तक 30-30 फुट की ऊंचाई के टीले हैं. गरमियों में तापमान 50 डिगरी सैल्सियस तक पहुंच जाता है.

ज्यादातर इलाका रेतीला है और छोटीछोटी कंटीली झाडि़यों से भरा है. इस पर पानी मुहैया होना भी मुश्किल है, जो संकरे कुओं में ही मिलता है. इस इलाके में केवल ऊंटों के दम पर ही सरहद की निगरानी कर पाना मुमकिन है.

ऊंट दिनभर में कम से कम 4 से 5 किलोमीटर तक चल लेता है. ऊंट की ज्यादा ऊंचाई के चलते इस पर बैठा सवार दूर तक देख सकता है. रेतीली जमीन पर भी यह आसानी से दौड़ सकता है.

सब से बड़ी बात यह है कि ऊंट को दिशा की जबरदस्त जानकारी होती है और इसीलिए इसे रात के समय चौकसी के लिए सब से बेहतर समझा जाता है.

देश की हिफाजत करने वाली बीएसएफ के लिए ऊंट बहुत ही अहम पशु है. इस का इस्तेमाल केवल सवारी या चौकसी करने के लिए ही नहीं होता, बल्कि इस का इस्तेमाल सरहद पर बनी चौकियों तक जवानों को खाना पहुंचाने के लिए भी होता है.

इस के अलावा यह बहुत से सामान जैसे चिट्ठियां, दवाएं, सिलैंडर वगैरह पहुंचाने के काम आता है.

ऊंट उन रेतीले इलाकों में भी पहुंच सकता है, जहां दूसरे वाहन नहीं पहुंच पाते. ऊंट की इन्हीं खासीयतों के चलते राजस्थान के रेतीले इलाकों और गुजरात की दलदली जमीन पर बीएसएफ इसे इस्तेमाल करती है.

बीएसएफ की जरूरत

कच्छ और सिंध के निकट 7 सौ किलोमीटर की सरहद में आपराधिक हरकतें बहुत ज्यादा होती हैं. बीएसएफ इस से निबटने के लिए कैमल सफारी का आयोजन भी करती है. इस में वह स्थानीय लोगों को सरहद के पास तक ले कर जाती है और सरहद पर होने वाले अपराधों के बारे में बताती है. इस से बीएसएफ को गांव वालों की ओर से काफी मदद भी मिलती है.

तस्करों और घुसपैठियों को कई बार हमारे जवानों ने ऊंटों पर बैठ कर ही पकड़ा है. गुजरात में साल 2001 में जब भूकंप आया, तो ऊंटों पर सवार जवान ही सब से पहले पहुंच पाए थे, पर अब ऊंटों को ले कर बीएसएफ और गृह मंत्रालय के लिए चेतावनी की घंटी बज चुकी है.

ऊंटों के प्रजनन का काम न तो कोई सरकारी एजेंसी और न ही बीएसएफ देखती है. बीएसएफ तो गांव वालों से या फिर मेलों से 5 से 10 साल की उम्र के ऊंटों को खरीदती है. खरीदने के बाद इन ऊंटों को 21 दिन तक अलग रखा जाता है और इन्हें होने वाली बीमारियां खासकर सुर्रा बीमारी के टीके लगाए जाते हैं.

इस के बाद इन को जोधपुर के सब्सिडरी ट्रेनिंग सैंटर में ट्रेनिंग दी जाती है. बीएसएफ एक ऊंट को 16 सालों तक इस्तेमाल में लेती है, फिर उस की नीलामी कर देती है.

ऊंटों की तस्करी

राजस्थान सरकार ने ऊंटों को राज्य से बाहर ले जाने पर पाबंदी लगा रखी है. इस के बावजूद हर रोज कम से कम 2 सौ ऊंटों की तस्करी राजस्थान से हो रही है. यह सारी तस्करी बागपत, उत्तर प्रदेश के एक गिरोह द्वारा की जा रही है, जिस में राजस्थान और हरियाणा के बहुत से पुलिस वालों की मदद ली जाती है.

सवाल उठता है कि ये ‘गरीब किसान’ सैकड़ों ऊंटों को खरीदने के लिए पैसा कहां से लाते हैं? एकएक ऊंट की कीमत लाखों रुपए में होती है और जैसेजैसे इन की तादाद कम हो रही है, इन की कीमत में इजाफा ही हो रहा है. कौन इन्हें पैसा दे रहा है?

सैकड़ों ऊंट बंगलादेश जा रहे हैं. तमाम ऊंट बागपत, मेरठ और हैदराबाद में मारे जा रहे हैं. दर्जनों ऊंट दिल्ली से सटे मेवात इलाके में लाए जाते हैं और मारे जाते हैं.

जरा सोचिए कि क्या यह केवल ऊंटों के मांस के लिए हो रहा है? इन्हें दिल्ली या आसपास के इलाकों में क्यों लाया जा रहा है? क्या कुछ लोगों ने पिछले 10 सालों में अचानक ऊंट के मांस का स्वाद चख लिया है?

ऊंट का मांस सूखा, कड़ा, तेज गंध वाला होता है. इसे खा पाना और पचाना बहुत ही मुश्किल होता है. ऊंट के मीट को पकाने में ही बहुत अधिक समय लगता है. खाने के लिहाज से कोई अच्छी पसंद नहीं कहा जा सकता, तो फिर कहां और क्यों जा रहे हैं ऊंट?

बीएसएफ अगर अपने बेड़े में आधे ऊंट ही शामिल कर पाई, तब अगले 5 सालों में क्या हालात होंगे? ऊंटों के हिमायती एक संगठन ने पिछले 3 सालों में 15 सौ से ज्यादा ऊंट पकड़े हैं, जो तस्करी के लिए ले जाए जा रहे थे.

बड़ा सवाल यही है कि ऐसे हालात में ऊंटों को बचाने के लिए राजस्थान और हरियाणा की सरकारें क्या उपाय कर रही हैं?

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