भरतपुर, राजस्थान के ओमी पटवारी अपनी छोटी बहन से बहुत स्नेह करते थे. जब उन की बहन की शादी हुई, तो वे भरतपुर में ही एक किराए के मकान में रहने लगी थी. उस समय ओमी पटवारी की नौकरी धौलपुर में थी. जब उन्हें अपनी बहन के किराए के मकान में रहने का पता लगा, तो वे उसे अपने साथ ही मकान में रहने के लिए ले आए थे.
ऐसा करते समय उन्होंने सोचा था कि अपने घर में रखने से उन की गरीब बहन को किराए के रुपयों की बचत ही नहीं होगी, बल्कि उस के वहां रहने पर मां की देखभाल होती रहेगी, क्योंकि उन की मां का धौलपुर में रहने पर मन नहीं लगता था.
सालों तक बहन उन के मकान में रहते हुए उस मकान को हथियाना चाहती थी. उस ने मां को बहला फुसला कर उन से अपने नाम गुपचुप तरीके से वसीयत करवा ली थी, क्योंकि वह मकान ओमी पटवारी ने अपनी मां के नाम पर खरीदा था.
एक दिन जब उन की मां की मौत हुई, तो उस ने मां का गुपचुप तरीके से अंतिम संस्कार भी कर दिया था. मां की मौत की सूचना उस ने अपने भाई को भी नहीं दी थी.
पड़ोस के लोगों ने जब बहन से उस के भाई ओमी पटवारी के बारे में पूछा, तो उस ने झूठमूठ ही कह दिया था कि उस ने तो उन्हें फोन पर सूचना दी थी, मगर उन्होंने आने से मना कर दिया था. ओमी पटवारी अपनी मां की मौत के समय जयपुर में थे.अपने बड़े भाई का मकान हथियाते समय उन की बहन ने सोचा था कि अब उसे अपने बड़े भाई से क्या मतलब है? उसे उन की अहमियत उस समय महसूस हुई, जब वह अपने बीमार बेटे को उपचार के लिए जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल ले कर आई थी.
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