पौलीथिनों को जोड़जोड़ कर बनाई गई ?ोंपडि़यों के पास पहुंचते ही नथुने में तेज बदबू का अहसास होता है. बगल में बह रही संकरी नाली में बजबजाती गंदगी. कचरा भरा होने की वजह से गंदा पानी गली की सतह पर आने को मचलता दिखता है.

तंग और सीलन भरी छोटीछोटी ?ोंपडि़यों से ?ांकते चीकट भरे चेहरे... खांसते और लड़खड़ाते जिंदगी से बेजार हो चुके बूढ़े, पास की सड़कों और गलियों में हुड़दंग मचाते मैलेकुचैले बच्चे...

यही है फुटपाथों की जिंदगी. सुबह होते ही शहर की चिल्लपौं... गाडि़यों की तेज आवाज और कानफोड़ू हौर्न से ले कर शाम ढलने के बाद के सन्नाटे को आसानी से ?ोलने की कूवत होती है फुटपाथ के बाशिंदों में.

ऐसा नहीं है कि फुटपाथों पर बनी ?ाग्गियों और बाजारों से प्रशासन अनजान होता है या गरीबों पर रहम खा कर उन्हें फुटपाथों पर कारोबार करने या बसने के लिए छोड़ दिया जाता है. इस के पीछे हरे नोटों की चमक काम करती है.

एक पुलिस अफसर बताते हैं कि फुटपाथ पर रहने वालों या कोई धंधा करने वालों को उस के एवज में खासी रकम चुकानी पड़ती है. फुटपाथियों को पुलिस वाले और लोकल रंगदार दोनों की ही मुट्ठी गरम करनी पड़ती है.

सरकार फुटपाथ से कब्जे को हटा तो नहीं सकती, पर उसे वहां रहने वालों या कारोबार करने वालों को पट्टे पर दे दे, तो सरकार के खजाने में काफी पैसा आ सकता है.

पटना के ही ऐक्जीबिशन रोड पर बड़ा पाव और आमलेट का ठेला लगाने वाला एक दुकानदार नाम नहीं छापने की गारंटी देने के बाद कहता है कि वह दिनभर में 2,000 रुपए का धंधा कर लेता है.

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