Writer- साधना शाह
अकसर हम अपने बैंक अकाउंट और बीमा पौलिसी के लिए अपने किसी करीबी को नौमिनी बना कर बेफिक्र हो जाते हैं, यह सोच कर कि अचानक मृत्यु हो गई तो नामित व्यक्ति को बैंक अकाउंट या बीमा पौलिसी की रकम मिल जाएगी. यह हमारा एक भ्रम है.
दरअसल, बीमा हो या बैंक अकाउंट, नौमिनी व्यक्ति उस का महज संरक्षक होता है, कानूनी उत्तराधिकारी नहीं होता. हमारे देश का कानून यही कहता है. बीमा संबंधित मामले की एडवोकेट देवस्मिता बसाक कहती हैं कि हमारे देश में नौमिनी या मनोनीत व्यक्ति कानूनीतौर पर उत्तराधिकारी नहीं होता है. बचत या निवेश का मालिकाना हक कानूनीतौर पर उसे प्राप्त नहीं हो सकता है. जिस व्यक्ति को नौमिनी बनाया गया है, अगर उसे कानूनीतौर पर अपने निवेश या बचत का मालिकाना हक दिलाना है तो नौमिनी बनाने के साथ उस के नाम पर वसीयत करना भी जरूरी है. यानी बचत-निवेश में किसी रिश्तेदार को नौमिनी बनाना काफी नहीं है.
नौमिनी बनाने या मनोनीत करने का अर्थ यही है कि खाताधारक या निवेशक के अचानक मर जाने पर बैंक खाते व निवेश की रकम को कोई मनोनीत व्यक्ति प्राप्त कर सकता है. लेकिन वह उस निवेश या अकाउंट की रकम का उत्तराधिकारी नहीं होता है.
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उदाहरण के तौर पर, किसी व्यक्ति ने बीमा पौलिसी लेते समय अपनी मां को नौमिनी बनाया. अगर वह व्यक्ति विवाहित है और मां के जीवित रहते उस व्यक्ति की अचानक मृत्यु हो जाती है तो बीमा की रकम उस की मां को नहीं मिलेगी, बल्कि वह रकम उस व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारी यानी उस की पत्नी को मिलेगी. देवस्मिता बताती हैं कि नौमिनी व्यक्ति अगर कानूनीतौर पर उत्तराधिकारी नहीं है तो उस बीमा पौलिसी की रकम पर उस का अधिकार नहीं हो सकता. हमारे यहां यह एक बहुत आम समस्या है. अपने जीवित रहते हुए अकसर लोग अपना उत्तराधिकारी तय करने के बारे में सोचते ही नहीं हैं. जाहिर है, नौमिनेशन कानून के इस पक्ष से लोग बेखबर होते हैं. इसीलिए देश की तमाम अदालतों में इस से संबंधित बहुत सारे मामले लंबित पड़े हैं.