Misha Agrawal Suicide: “मेरी छोटी बहन ने आसपास ही अपनी पूरी दुनिया बसा ली थी. उस का एक मिलियन फौलोअर्स पूरा करने का सपना था, लेकिन उस के फौलोअर्स की संख्या कम होने लगी थी. वह उस समय परेशान हो गई थी और खुद को बेकार समझने लगी थी. वह हद से ज्यादा डिप्रैशन में थी और कहती थी कि मेरे फौलोअर्स कम हो गए, तो मैं फिर क्या करूंगी. वह फौलोअर्स की दुनिया में इतनी खो गई कि उस ने अपनी जान ले ली और हमारा परिवार टूट गया.”
ये लाइनें सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर मिशा अग्रवाल के परिवार की हैं जिस ने हाल ही में चंद फौलोअर्स के लिए अपने जान की कीमत लगा दी और 30 अप्रैल को सुसाइड कर लिया.
एक जानीपहचानी इन्फ्लुएंसर, मिशा अग्रवाल ने खुदकुशी कर ली. महज 23 साल की उम्र में, जब जिंदगी के सपने बुनने की उम्र होती है, मिशा ने अपनी जान ले ली. उस की बहन के मुताबिक, मिशा पिछले कुछ हफ्तों से बहुत परेशान थी, वजह? उस के इंस्टाग्राम फौलोअर्स कम हो रहे थे. पोस्ट पर पहले जितने लाइक्स नहीं आते थे. वह खुद को बेकार समझने लगी थी.
मिशा की कहानी सिर्फ एक इन्फ्लुएंसर की कहानी नहीं है. ये उस खतरनाक जाल की कहानी है, जिस में आज का युवा फंस रहा है. सोशल मीडिया ने हमें एक ऐसी दुनिया में धकेल दिया है, जहां हमारी कीमत हमारी पोस्ट के लाइक्स, कमेंट्स और फौलोअर्स की संख्या से तय होती है.
अब यह सुन कर कोई कह सकता है “अरे, फौलोअर्स ही तो थे” या “इस में जान देने की क्या बात थी?” लेकिन शायद हम उस दुनिया को नहीं समझते जिस में आज का युवा जी रहा है. सोशल मीडिया पर पहचान बनाना, वहां की दुनिया में “कूल” दिखना और हर रोज कुछ नया, बेहतर, सुंदर दिखाना ये सब आज एक तरह से फुल टाइम जौब और आत्मसम्मान दोनों बन गया है.
मिशा अग्रवाल की तरह कई इन्फ्लुएंसर्स के लिए फौलोअर्स की संख्या सिर्फ एक नंबर नहीं, बल्कि उन की पूरी जिंदगी का मकसद बन जाती है. उन की बहन ने बताया कि मिशा ने अपने फोन के वालपेपर पर “1 मिलियन सून, कीप गोइंग” लिख रखा था, जो दिखाता है कि वो इस लक्ष्य के लिए कितनी दीवानी थी.
सोशल मीडिया की चमक और उस का प्रैशर
जब सोशल मीडिया की शुरुआत हुई थी, तब ये बस एक मजेदार जरिया था दोस्तों से जुड़ने का. लेकिन धीरेधीरे ये एक ऐसी दुनिया बन गई, जहां हर किसी को खुद को साबित करना होता है अपने कपड़ों से, घूमने की जगहों से, खाना, पार्टियां, रिलेशनशिप. हर चीज एक ‘कंटैंट’ बन चुकी है. लोग अब वैसा नहीं जीते जैसे उन्हें जीना है, बल्कि वैसा जीते हैं जैसा दिखाना है. एक फोटो में मुसकराते हुए इंसान के पीछे कितनी उदासी छुपी है, ये कोई नहीं देखता.
किसी पोस्ट पर आज 1000 लाइक्स आ जाएं तो दिल कहता है थोड़ा और थोड़ा और. टैक्निक्ली देखा जाए तो 1000 लाइक्स भी कुछ कम नहीं इस का यह मतलब हुआ कि हजार लोगों ने आप की फोटो को लाइक किया लेकिन सोशल मीडिया की इस भ्रामक दुनिया में मिलियन से नीचे कोई बात नहीं करता.
मिलियन लाइक्स का मतलब हुआ आप को अच्छा रिस्पांस मिल रहा है. लोग आप के कंटैंट को पसंद कर रहे हैं. इस से क्रिएटर को डोपामाइन बूस्ट मिलता है. इस का मतलब लगभग सभी ने अपनी खुशी का रिमोट सोशल मीडिया को थमाया हुआ है. अगर लाइक्स मिले तो खुश नहीं तो पूरा दिन खराब. ये हम सब के साथ होता है. लोग सोशल मीडिया को ही अपना कैरियर बना लेते हैं, उन के लिए ये सिर्फ मूड की बात नहीं, बल्कि पहचान की बात हो जाती है.
क्रिएटर बर्नआउट
बहुत से कंटेंट क्रिएटर्स रोजाना 3-4 पोस्ट, स्टोरीज, वीडियो अपलोड करते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि अगर मैं ने एक दिन कुछ नहीं डाला, तो मेरे फौलोअर्स कम हो जाएंगे. क्रिएटर बर्नआउट एक असली समस्या है. 2021 में यूट्यूब ने अपने इंटरनल सर्वे में पाया कि “60% से ज्यादा कंटेंट क्रिएटर्स ने माना कि वे लगातार काम कर के थक चुके हैं, लेकिन रुक नहीं सकते.”
क्रिएटर्स बताते हैं कि लाइक्स और फौलोअर्स की होड़ में वे मैंटली फ्रसट्रैट हो जाते हैं पर क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया को ही फुल टाइम इनकम सोर्स बनाया हुआ है इसलिए अब वे पीछे जाने की हिम्मत नहीं करते. ये वाकई सोसायटी में एक गंभीर समस्या बन चुकी है.
मिशा भी उन्हीं में से एक थी. जिस ने सोशल मीडिया को अपनी दुनिया बना लिया और जब रीच गिरने लगी तो उस ने सुसाइड करना ही इस का सौल्यूशन समझा. इसी तरह बहुत से इन्फ्लुएंसर्स के लिए लाइक्स, कमेंट्स और फौलोअर्स ही सब कुछ बन जाते हैं. अगर बढ़े तो वो खुद को सफल समझते हैं. घटे तो लगता है कि शायद मैं अब अच्छा नहीं रहा, लोग मुझे भूल रहे हैं.
क्यों घटती है फौलोअर्स की संख्या
जब फौलोअर्स घटने लगते हैं, तो वे खुद को दोष देने लगते हैं. सोचते हैं कि मेरी वैल्यू ही खत्म हो गई. अगर आप एक ही तरह का कंटैंट बारबार डाल रहे हैं तो औडियंस की दिलचस्पी कम हो सकती है.
लेकिन फौलोअर्स की संख्या घटने की वजह सिर्फ टैक्निकल नहीं होती. रील्स और शौर्ट्स के चलते आज कोई एक चीज ही ट्रैंड पर नहीं रहती न दो दिन से ज्यादा चल पाती है. हर रोज या कहें कि हर घंटे कोई नया ट्रैंड चल पड़ता है. इसलिए औडियंस के पास हर फीड पर कुछ न कुछ रीलनुमा कचरा आता रहता है. इंस्टाग्राम खोलते ही लोग कुछ नया और अलग देखने की चाह रखते हैं. इंस्टाग्राम के पूर्व इंजीनियर गिलौम चैसलट का कहना है कि, “एल्गोरिदम वो नहीं दिखाते जो सच है, वो दिखाते हैं जो सब से ज्यादा ध्यान खींचे. यानी जो आज है वो एल्गोरिदम बदलते ही कल गायब हो सकता है. इसलिए पूरी पहचान को केवल सोशल मीडिया पर टिकाना, रेत पर घर बनाने जैसा है.
इस के अलावा, आज हर कोई कंटेंट क्रिएटर बन घूम रहा है. किसी एक भी विडियो पर अच्छे व्यूज आ गए तो वे फुल टाइम इसी काम में जुट जाते हैं. नए इन्फ्लुएंसर्स की वजह से पुराने वाले पीछे रह जाते हैं. ये एक ऐसी रेस है, जिस में हर वक्त आगे रहना नामुमकिन है. फिर भी, लोग इस रेस को अपनी जिंदगी का आधार बना लेते हैं.
इसे एक रियल उदाहरण की मदद से आसानी से समझा जा सकता है. टिकटौक से फेमस हुए फैजू, जन्नत जुबैर, रियाज अली, अरिश्फा खान आदि ये कभी एक समय पर पूरे इंटरनेट पर राज कर रहे थे. इन का अच्छाखासा फैनबेस था, बच्चेबच्चे की जुबान पर इन का नाम रटा हुआ था. लेकिन आज की डेट में ये क्रिएटर्स कहीं नहीं दिखाई पड़ते. यानी किसी दिन चमकता तारा बना इंफ्लुएंसर किसी भी पल जमीन पर टूट कर गिर सकता है.
वर्चुअल दुनिया से दोस्ती है टौक्सिक
मिशा की इंस्टाग्राम प्रोफाइल आज भी देखो तो उस में एक परफैक्ट जिंदगी दिखती है. वह ज्यादातर सर्कास्टिक वीडियोज बनाती थी और लोगों को हंसाती थी. लेकिन खुद उस के दिल में क्या चल रहा था, ये कोई नहीं जानता था. अफसोस की बात है कि आज की युवा पीढ़ी अपने आप को सिर्फ एक स्क्रीन पर मिले लाइक्स से मापने लगी है. डोपामाइन हिट मिलने से उन्हें खुशी मिलती है लेकिन दिक्कत तब होती है जब यह एक लत बन जाए. हारवर्ड मैडिकल स्कूल की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘सोशल मीडिया पर बारबार नौटिफिकेशन चेक करना वैसा ही असर डालता है जैसा ड्रग्स या जुए की लत.’
जब आप एक पोस्ट, स्टोरी या रील कुछ भी सोशल मीडिा पर साझा करते हैं तो 24 घंटे के भीतप कम से कम 1000 हजार बार उसे चैक करते रहते हैं कि देखें अब कितने लाइक्स मिले, किस ने क्या कमेंट किया. इसलिए जुए और शराब की लत की लिस्ट में इसे भी शामिल करना गलत नहीं होगा.
बात अकेली मिशा की नहीं है. युवा शोर्टकट पैसा कमाना चाहता है. फेमस होना चाहता है. इस के लिए वह सोशल मीडिया पर कुछ भी कर रहा है. और जब वह फेमस हो जाता है तो इस बात के लिए तैयार ही नहीं है कि उस की पोपुलेरिटी में गिरावट भी आ सकती है. सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर की उम्र किसी औफिस में काम करे वर्कर जितनी नहीं है. इन्फ्लुएंसर 4-5 महीने में रिटायर हो जाता है. अगर उसे लंबे समय तक बने रहना है तो खुद को ट्रेंड के साथ अपडेट करना पड़ता है, जिस में 99 प्रतिशत इन्फ्लुएंसर नाकामयाब साबित होते हैं. ऐसे में वे मिशा जैसी स्थिति में भी आ जाते हैं. मिशा की कहानी हमें एक आईना दिखा गई. ये सोचने का वक्त है कि क्या हम भी उस नकली दुनिया में जी रहे हैं जहां हम खुद को दूसरों की नजरों से देखते हैं?
सोशल मीडिया से कैसे निपटें?
डिजिटल डिटौक्स – हर हफ्ते कुछ दिन ऐसा रखें जब आप सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रहें. असल दोस्तों से मिलिए, असल बातें कीजिए.
रियल जिंदगी बनाइए: कैमरे के लिए नहीं, खुद के लिए जिएं. हर चीज को पोस्ट करने की जरूरत नहीं.
शेयर करने से न कतराएं: अगर आप अकेला महसूस कर रहे हैं, तो किसी दोस्त, परिवार या प्रोफैशनल से बात कीजिए. मदद मांगना कमजोरी नहीं है.
फिल्टर की दुनिया से बाहर आएं: हर चीज सुंदर दिखाने की जरूरत नहीं होती. परफैक्ट दिखने का प्रेशर सब से बड़ा झूठ है.
हेट कमेंट्स से बचिए: आप के एक ताने से किसी की जान जा सकती है.