लेखक-  डा. प्रमोद प्रभाकर, डा. मनोज कुमार भारती

भारत कृषि प्रधान देश है. इस में पशुपालन कृषि उत्पादन प्रक्रिया में सहभागी है. हमारा देश दुनियाभर में दूध उत्पादन के मामले में अव्वल है. यह वैज्ञानिकों और किसानों की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है.

पशुओं के रखरखाव में अकसर 60-65 फीसदी खर्च पालनेपोसने पर ही आता?है. देश में साल में 2 बार हरे चारे की तंगी या कमी के मौके आते हैं, अप्रैलजून और नवंबरदिसंबर. पशुपालक गरमी में मक्का, लोबिया ज्वार, बाजरा वगैरह वैज्ञानिक विधि से उगा कर कम लागत में ज्यादा पैदावार ले सकते हैं. दलहनी चारे अधिक पौष्टिक होते?हैं, पर उन्हें ज्यादा नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि इस से पशुओं में पेट फूलना या अफरा रोग हो जाता है.

पशुपालक एक दलहनी व गैरदलहनी वाली फसलों को मिला कर के अपने खेतों पर लगाएं. इस प्रकार के हरे चारे को पशुओं को खिलाने से पशुओं को कार्बोहाइड्रेट के साथसाथ प्रोटीन की आपूर्ति भी होती है. साथ ही, पशुओं की अच्छी बढ़ोतरी होने के साथसाथ दूध भी बढ़ जाता है.

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जलवायु : ज्यादा हरा चारा हासिल करने के लिए पानी, हवा, सूरज की रोशनी और माकूल जलवायु की जरूरत होती है. सफल उत्पादन मौसम की अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही दशाओं पर निर्भर करता है. आमतौर पर 25-30 डिगरी सैल्सियस तापमान मक्का, ज्वार, बाजरा, लोबिया वगैरह के लिए उपयुक्त रहता है.

जमीन की तैयारी : सही जल निकास वाली दोमट या रेतीली मिट्टी इस की पैदावार के लिए सही रहती है. साथ ही, जमीन समतल होनी चाहिए. एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें व 2-3 गहरी जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करने के बाद जमीन को समतल कर लें.

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