तकरीबन 44,000 शराब पीने वालों पर एक स्टडी की गई थी. ये लोग 24 घंटे में तकरीबन 12 बार शराब पीते थे. उस स्टडी में पाया गया कि उन में से आधे से ज्यादा लोगों की कुछ सालों में ही शराब पीने के चलते मौत हो गई.
शुरुआती दौर में शराब पीने से लिवर में जलन होती है, लेकिन शराब पीने वाले इसे खाने के साथ की चीजों में उल?ा कर जलन को नजरअंदाज कर जाते हैं और धीरेधीरे जब कुछ समय बीत जाता है, तो शराब के चलते होने वाली ‘सिरोसिस औफ लिवर’ जैसी बीमारी शरीर को घेर लेती है.
भारतीय जनता पार्टी की नेता और मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं उमा भारती ने दिखावे के लिए ही भोपाल में मार्च में एक शराब की दुकान पर धरनाप्रदर्शन किया, वरना चाहे भाजपा सरकार हो या दूसरे दलों की सरकारें उन में शराब की बिक्री न केवल बढ़ रही है, बल्कि उस की दुकानें भी अब जगमग करती नजर आ रही हैं. मध्य प्रदेश में साल 2020-21 में 1,183 करोड़ रुपए शराब पर टैक्स से मिले, जबकि साल 2019-20 में 930 करोड़ रुपए मिले थे.
देशभर में तकरीबन 18 फीसदी लोग गांवों में और 21 फीसदी लोग शहरों में शराब तकरीबन नियमित लेते हैं. शराब का व्यापार देश में तकरीबन 3.9 लाख करोड़ रुपए का है और हर साल
7-8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है.
अब अमीरों की जगह गरीब ज्यादा पीने लगे हैं, क्योंकि पिछले दशकों में उन की आमदनी में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है. पर, वह आय घर पर खर्च होने की जगह ठेकों पर खर्च हो रही है.
मध्य वर्ग में तो यह फैशन बनती जा रही है. फिल्मों और प्रचार साधनों के बल पर धुआंधार शराब को धर्म की तरह स्थापित करने का काम चालू है, जहां पहले 7 फीसदी मिडिल क्लास के लोग शराब पीते थे, वहीं अब 21 फीसदी पी रहे हैं. साल 2030 तक यह आंकड़ा तकरीबन 44 फीसदी हो जाएगा. कोई ऐसा घर नहीं छूटेगा, जहां शराब की बोतलें फ्रिज में नहीं दिखेंगी. साल 2005 के मुकाबले 140 फीसदी बढ़ कर प्रति व्यक्ति शराब का सेवन साल 2016 में 5.7 लिटर प्रति वर्ष हो गया है, जो बेहद खतरनाक है.
भारत में जहां हजार व्यक्तियों में से महज 170 को ही दोनों वक्त का भरपेट खाना मिलता है, वहीं शराब की खपत हर 200 लोगों में एक बोतल रोज की है. अब सरकार कमा रही है और घर रो रहे हैं. अब तो महंगी स्कौच अपने देश में ही बनने लगी है और भारत सरकार ने इस के आयात पर टैक्स भी बहुत कम कर दिया है.
पैसे वाले लोगों की पार्टियों में शराब पानी की तरह बहती है और नतीजे में आप कभी जेसिका लाल की लाश देखते हैं, तो कभी रातों में बीच सड़क पर ठुकी हुई गाडि़यां.
शराब के कारण उपभोक्ता को हो रहे नुकसान को नजरअंदाज करते हुए शराब कंपनियां, शराब विक्रेता और बार मालिक शराब की मांग को बढ़ाने के लिए नएनए ढंग अपनाते हैं.
अपने उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए शराब बनाने वाली कंपनियों ने शाहरुख खान से ले कर रिएलिटी शो ‘बिग ब्रदर’ में शराब का फिल्मी विज्ञापन किया है.
सरकार ने सार्वजनिक जगहों या शराब पी कर गाड़ी चलाने पर कानूनी रोक लगा रखी है, तो शराब के व्यापारियों ने उस का भी तोड़ निकाल लिया है. जब दिल्ली यातायात पुलिस ने शराब पी कर कार चलाने वालों पर भारी जुर्माना और सीधे जेल भेज देने की मुहिम शुरू की, तो बार मालिकों ने अपने यहां ड्राइवर भरती कर लिए, ताकि
नशेडि़योंको गाड़ी न चलानी पड़े.
कुछ बार मालिकों ने टैक्सी सेवाओं से करार कर लिया. जाहिर है, नशे की हालत में व्यक्ति को सुरक्षित उस के घर छोड़ दिया जाता है और इस आने वाले खर्च को शराब पीने वाले आदमी की जेब से ही वसूला जाता है.
सरकार यह सब जानते हुए भी शराब के खिलाफ कोई सख्त कानून बनाने से बचती है, तो वजह यही है कि सरकारी खजाने के लिए शराब शायद इतनी बड़ी मजबूरी बन चुकी है कि सिर्फ नकली सतर्कता के अलावा ज्यादा से ज्यादा शराब खपाने पर सरकारें जोर देती हैं.
दिलचस्प बात तो यह है कि शराब पीना सेहत के लिए हानिकारक है. इस को बताने का नाटक जिस होर्डिंग और बोर्ड के जरीए सरकार करती है, उस का भुगतान भी शराब की कमाई से होता है.
अब सवाल यह उठता है कि ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा क्या है? आजादी के बाद 60 के दशक तक भारत सरकार शराब की बिक्री को बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं थी और कई राज्यों में तो पूरी तरह से नशाबंदी लागू कर दी गई थी. मगर इस के बाद सड़कें बनाने और बाकी विकास के कामों के लिए पैसा कम पड़ने लगा, तो नशाबंदी पर कसता शिकंजा ढीला पड़ने लगा, जो धीरेधीरे इतना ढीला हुआ कि गांठ ही खुल गई.
अब तो सरकारें खुद ही शराब बेचने का धंधा कर रही हैं. इस के अलावा शराब के बड़े व्यापारी चुनाव के मौके पर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में मोटी रकम देते हैं. इस वजह से वे सत्ता में आने पर शराब के लिए सख्त कानून बनाने से हिचकिचाते हैं.
अब तो देश का कानून बनाने वालों में विजय माल्या जैसे बड़े शराब के कारोबारी भी शामिल थे, जो देश छोड़ कर भाग गए हैं. वे जहाज भी उड़ाते थे और शराब भी बेचते थे. उन्होंने विदेशी स्कौच के कई ब्रांड भी खरीद लिए थे और उन की एयरलाइंस का नाम भी प्रसिद्ध किंगफिशर बियर के नाम पर ही था. ऐसे में शराब के खिलाफ सख्त कानून बनना मुश्किल दिख रहा है.
देश की संसद में एक विजय माल्या ही नहीं, बल्कि और भी कई सफेदपोश चेहरे हैं, जिन को शायद माफियाओं के साथ उठनाबैठना होता है. अगर इन की दखलअंदाजी रोकनी है तो आम जनता को ही आगे आना होगा, क्योंकि इन सब में नुकसान तो उसी को हो रहा है.