जब भी देश में जातिगत जनगणना की बात छिड़ती है, तब सब से पहले उन लोगों का खयाल आता है, जो बहुजन समाज के हैं. देश की वह कमेरी आबादी, जो आज भी अपनी मरजी से शादी के जश्न का मजा नहीं ले पाती है. यह तबका इतना ज्यादा पिछड़ा और अंधविश्वास के जाल में उलझा हुआ है कि जो पंडेपुजारी और अगड़ी जमात के दबंग फरमान सुना देते हैं, वह इन के लिए पत्थर की लकीर हो जाता है.

यही वजह है कि इस बहुजन समाज के नौजवान अपनी शादी में घोड़ी पर नहीं बैठ पाते हैं, क्योंकि इस से अगड़े समाज की शान पर बट्टा जो लग जाता है. वे डीजे के म्यूजिक पर ठुमके नहीं लगा सकते, क्योंकि फिल्मी गानों पर अपने यार की शादी में खुशी जाहिर करना उन का हक नहीं है.

चूंकि एक साजिश के तहत इन लोगों को पढ़ाईलिखाई से दूर रखा जाता है, तो ये बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर होते हैं और फिर छोटेमोटे काम कर के एक साधारण सी जिंदगी गुजार देते हैं. वे अगर गलती से थोड़ाबहुत पढ़लिख भी गए, तो शादी के लायक साथी नहीं मिल पाता है. लड़कियों के लिए ज्यादा पढ़ाईलिखाई ही उन की दुश्मन बन जाती है. उन्हें अपने समाज में लायक लड़का नहीं मिलता और कहीं दूसरी तथाकथित बड़ी जाति के लड़के से ब्याह रचा लिया, तो उम्रभर डर के साए में जिंदगी गुजारने को मजबूर होना पड़ता है.

लड़कियों के लिए एक और समस्या होती है 18 साल से कम उम्र में ही शादी करा देना. तब तक वे न तन से और न ही मन से शादी की जिम्मेदारी निभाने के लायक हो पाती हैं. जो खुद कमजोर हो, वह क्या सेहतमंद बच्चे को जन्म दे पाएगी. नतीजतन, उन्हें बीमारियों से जूझना पड़ता है. कोढ़ पर खाज है शादी के वे दस्तूर, जो इतना धीरेधीरे बदल रहे हैं कि उम्मीद की किरण बड़ी हलकी नजर आ रही है.

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