प्रदीप ने हाल ही में नया घर बनवाया था. अच्छाखासा पैसा भी खर्च किया था. छत पर पानी को स्टोर करने के लिए उस ने सीमेंट, ईंट और कंक्रीट की बड़ी हौदी बनवाई थी.

कुछ दिनों तक तो वह हौदी ठीक रही, लेकिन शायद ठेकेदार ने उस में अच्छी क्वालिटी की सामग्री नहीं लगाई थी, इसलिए वह कई जगह से रिसने लगी.

इस से हौदी में सीलन इतनी ज्यादा बढ़ गई कि वह उस की छत से होते हुए नीचे कमरों की छत तक जा पहुंची. इस से सारी सफेदी भी खराब हो गई. प्रदीप को दोहरा नुकसान हो गया.

आज के जमाने में कच्चे घरों का रिवाज रह नहीं गया है. लोग पक्के घर बनवाते हैं तो उन में पानी स्टोर करने के लिए टंकी बनाना जरूरी हो जाता है.

चूंकि पानी की प्लास्टिक की टंकियां लगवाने का चलन पहले शहरों में ज्यादा था इसलिए ज्यादातर लोग जो गांवदेहात या कसबों में रहते थे वे प्रदीप की तरह ईंटों की हौदी बनवा कर ऐसी ही समस्याओं से जूझते दिखाई देते थे.

पर अब माहौल बदल गया है. सब जगह बड़े घर बनने लगे हैं जिन में प्लास्टिक की बड़ीबड़ी टंकियां रखी होती हैं. इतना ही नहीं, छोटेछोटे घरों में भी प्लास्टिक की छोटी टंकियां रखने की औप्शन रहती है.

पानी की प्लास्टिक की टंकियां मजबूत और टिकाऊ रहती हैं, इसलिए सालोंसाल चलती हैं. उन्हें बाजार से खरीद कर घर तक लाना और छत तक पहुंचाना भी ज्यादा मुश्किल काम नहीं होता है. चूंकि वे लिटर के हिसाब से बनाई जाती हैं तो घर कितना बड़ा है, उस में कितने लोग रहते हैं, उस को देखपरख कर ही टंकी खरीदी जा सकती है.

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