रंगीन, आशिकमिजाज पति पाना भला किस औरत की दिली तमन्ना न होगी? अपने ‘वे’ इश्क और मुहब्बत के रीतिरिवाजों से वाकिफ हों, दिल में चाहत की धड़कन हो, होंठों पर धड़कन का मचलता इजहार रहे, तो इस से ज्यादा एक औरत को और क्या चाहिए? शादी के बाद तो इन्हें अपनी बीवी लैला लगती है, उस का चेहरा चौदहवीं का चांद, जुल्फें सावन की घटाएं और आंखें मयखाने के प्याले लगते हैं. लेकिन कुछ साल बाद ही ऐसी बीवियां कुछ घबराईघबराई सी, अपने उन से कुछ रूठीरूठी सी रहने लगती हैं. वजह पति की रंगीनमिजाजी का रंग बाहर वाली पर बरसने लगता है.
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यही करना था तो मुझ से शादी क्यों की
शादी से पहले विनय और रमा की जोड़ी को लोग मेड फौर ईचअदर कहते थे. शादी के बाद भी दोनों आदर्श पतिपत्नी लगते थे. लेकिन वक्त गुजरने के साथसाथ विनय की आंखों में पहले वाला मुग्ध भाव गायब होने लगा. राह चलते कोई सुंदरी दिख जाती, तो विनय की आंखें उधर घूम जातीं. रमा जलभुन कर खाक हो जाती. जब उस से सहा न जाता, तो फफक पड़ती कि यही सब करना था, तो मुझ से शादी ही क्यों की? क्यों मुझे ठगते रहते हो?
तब विनय जवाब देता कि अरे भई, मैं तुम से प्यार नहीं करता हूं. यह तुम ने कैसे मान लिया? तुम्हीं तो मेरे दिल की रानी हो.
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सच यही था कि विनय को औफिस की एक लड़की आकर्षित कर रही थी. खुशमिजाज, खिलखिलाती, बेबाक मंजू का साथ उसे बहुत भाने लगा था. उस के साथ उसे अपने कालेज के दिन याद आ जाते. मंजू की शरारती आंखों के लुकतेछिपते निमंत्रण उस की मर्दानगी को चुनौती सी देते लगते और उस के सामने रमा की संजीदा, भावुक सूरत दिल पर बोझ लगती. रमा को वह प्यार करता था, अपनी जिंदगी का एक हिस्सा जरूर मानता था, लेकिन रोमांस के इस दूसरे चांस को दरकिनार कर देना उस के बस की बात न थी.