देश में माहवारी को ले कर आज भी तमाम तरह की भ्रांतियां और अंधविश्वास फैले हुए हैं. यह शर्म की बात है कि 21वीं सदी के भारत में भी महिलाओं को माहवारी के दौरान घर से बाहर निकलने पर बैन लगा दिया जाता है.

लोगों में यह अंधविश्वास भी गहरे तक पैठ जमाए हुए है कि माहवारी में इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े को इधरउधर नहीं फेंकना चाहिए, क्योंकि ऐसे कपड़े पर लोग टोनाटोटका कर देते हैं. इस के अलावा माहवारी के दौरान महिलाओं को पूजाघर या रसोईघर में जाने की मनाही होती है. वे घर के मर्दों को नहीं छू सकती हैं. यहां तक कि अचार छूने पर भी रोक होती है.

परिवार के मर्द सदस्य आज भी महिलाओं के इस जरूरी मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते हैं, जिस के चलते महिलाएं चाह कर भी अपने भाई, पिता या पति से बाजार से सैनेटरी पैड नहीं मंगा पाती हैं. वे खुद दुकान से सैनेटरी पैड खरीदने में भी झिझक महसूस करती हैं. माहवारी से जुड़ी इन रूढ़ियों और भ्रांतियों के चलते काली पन्नी का पलड़ा सब से भारी है.

सुरेश पांडेय की उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में बड़ी मैडिकल दुकान है. उन के यहां हर रोज बहुत सारे लोग दवाएं और सेहत से जुड़ी चीजें खरीदने आते हैं. उन का कहना है, ‘‘हमारे मैडिकल स्टोर पर हर दिन सैकड़ों पैकेट सैनेटरी पैड की बिक्री होती है, जिन्हें खरीदने वाली 80 फीसदी तादाद महिलाओं की ही होती है.

‘‘ज्यादतर महिलाएं जब मैडिकल स्टोर पर सैनेटरी पैड खरीदने आती हैं, तो भीड़ होने की दशा में वे भीड़ के छंटने का इंतजार करती हैं. इस के बाद वे सैनेटरी पैड को ब्रांड के नाम से मांगती हैं, क्योंकि उन्हें सैनेटरी पैड कहने में भी शर्म आती है.

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