Vijay Shah: ‘महाभारत’ युद्ध के आखिरी दिन हैं. ‘पितामह’ के खिताब से नवाज दिए गए भीष्म तीरों की शय्या पर पड़े सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे हैं. वे बहुत तकलीफ में हैं, शारीरिक भी और मानसिक भी. चारों तरफ हिंसा है, खूनखराबा है. सैनिकों के कटे सिर और अंग कुरुक्षेत्र में कचरे की तरह बिखरे पड़े हैं. खुद भीष्म के शरीर से भी खून बह रहा है. पूरा शरीर तीरों से घायल है, लेकिन हश्र जानते हुए भी वे इस भीषण युद्ध का अंत देखना चाहते हैं.
‘महाभारत’ के अनुशासन पर्व में जिक्र है कि उन्होंने इस दौरान युधिष्ठिर को जो ज्ञान की बातें बताईं, उन में से एक प्रमुख और प्रचलित है :
अहिंसा परमो धर्म:, धर्म हिंसा तथैव च.
यानी अहिंसा सर्वोच्च धर्म है, लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी धर्म हो सकती है.
धर्मग्रंथों में बताई गईं दूसरी हजारोंलाखों बातों की तरह यह भी एक घुमावदार बात है, जिस की टाइमिंग को ले कर कहा जा सकता है कि यह बात तो उन्हें तब कहनी चाहिए थी, जब भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था.
सभा में विदुर, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य समेत खुद भीष्म भी सारा तमाशा खामोशी से देखते रहे थे. न जाने क्यों तब उन्हें यह ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ था. और हो गया था, तो उन्होंने इस पर अमल करने की जरूरत महसूस नहीं की थी कि दुर्योधन के आदेश पर दुशासन जो कर रहा है वह अधर्म से भी बदतर चीज है. लिहाजा, प्यार और शराफत से न मानने पर हिंसा किया जाना भी धर्म है, क्योंकि आखिरकार उस की ही तो रक्षा करनी है.
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