Untouchability: राजग सरकार का खुला नारा है कि न स्कूल, न अस्तपाल, न सड़क, न पुल बस मंदिर ही मंदिर. अगर कभी प्योर मंदिर विरोधी रहे रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान अपनी मरजी से या दलित होने की वजह से नहीं बुलाए जाने पर सीतामढ़ी में जानकी मंदिर के बनाने पर हुए पाखंड में मौजूद नहीं थे तो अच्छा ही कहा जाएगा.
सदियों से दलितों को, जिन्हें वर्णव्यवस्था में मनुष्यों से भी बाहर रखा गया है, अगर आज भी देशभर के गांवों में, कसबों में, शहरों की स्लम बस्तियों में, स्कूलों, कालेजों में, दफ्तरों में नीचा दिखाने की कोशिश की जाती रहती है तो इसलिए कि 1932 के गोल मेज सम्मेलन के बाद गांधी अंबेडकर पूना पैक्ट और संविधान के बावजूद दलित अपनी पहचान बनाने और समझने को तैयार नहीं हैं.
जो सताया गया है, लड़ाई उसे लड़ने होती है. उसे सताने वालों की भीड़ में शामिल हो कर बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
यह चालबाजी की सफलता है कि जो पौराणिक ग्रंथों में समाज से बाहर माने गए. जिन्हें मुगलों और अंगरेजों ने थोड़ी इज्जत भी दी, वे आजादी के 75 साल बाद आज भी, उसी तरह छुआछूत, मजाक, पिटाई, लूट, शोषण के शिकार हैं और उसी पौराणिक सोच की वजह से आज भी उसे कर्मों का फल मानते हैं.
बहुजन समाज पार्टी की मायावती, रामनाथ कोविंद, प्रकाश अंबेडकर, सोनकर शास्त्री खुद व उन के पुत्र, वे बीसियों सांसद व विधायक जो राममंदिर लहर में रिजर्व सीटों से मंदिर वाली पार्टी से जीत कर अपना कल्याण आम दलितों की इज्जत की लाशों पर करते आ रहे हैं, कभी समझ नहीं पाएंगे कि वे कैसे ठगे जा रहे हैं.
हर दलित नेता आसानी से बिका और फिर उदित राज की तरह निकाल फेंका गया. चिराग पासवान को भी अपमान का सामना करना पड़ा था जब दिल्ली में रामविलास पासवान के मकान का सामान निकाल बाहर सड़क पर पटक दिया गया था. जब चिराग पासवान ने मंदिर पार्टी फिर जौइन कर ली तो ही इज्जत मिली.
अब अगर वे किसी वजह से जानकी मंदिर के कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे तो उन्हें भी समझ लेना चाहिए, उन के वोटरों को भी कि इस देश के सत्ताधारी अभी भी दलितों को बराबरी की जगह देने को तैयार नहीं हैं.
इस में बड़ी बात नहीं हैं. चुनाव आतेआते उन्हें मना लिया जाएगा और औकात भी दिखा दी जाएगी. साम
दाम दंड भेद हमारे यहां सब से ज्यादा दलितों के साथ चल रहा है और चूंकि वे इस के शिकार बनने को तैयार बैठे रहे हैं, ऊंचे इस का फायदा उठा रहे हैं.
जिन के कंधों पर पूरी जाति को कीचड़ से निकालने की जिम्मेदारी है, वे कीचड़ की नाली अपनों की बस्ती की ओर मोड़ देते हैं ताकि उन के पैर बचे रह जाएं. छुआछूत इसी वजह से हजारों साल जिंदा रही और आज भी फलफूल रही है. Untouchability