‘जैसा नाम वैसा ही गुण’ कहावत साध्वी प्रज्ञा पर पूरी तरह फिट बैठती थी. समाज का एक बड़ा तबका खासतौर से जैन समाज साध्वी प्रज्ञा को देवी का अवतार मानता था. धर्म की बातों पर वह घंटों बोलती और सत्संग में आए हजारों लोग मंत्रमुग्ध हो कर उसे सुनते थे.
रजनीश छोटे शहर का एक गरीब लड़का था. सीधासादा, गोरे रंग का और उस की उम्र तकरीबन 27-28 साल होगी. वह कभी किसी परचून की दुकान पर, तो कभी कपड़े की दुकान पर काम करता. वह बहुत ज्यादा पढ़ालिखा भी न था. पहचान के नाम पर उसे इतना मालूम था कि वह जैनी है.
रजनीश साल में 8 महीने काम करता और चतुर्मास में जब मुनि अपनी मंडली के साथ जैन सभागार में रुकते, तो सत्संग मंडली की सेवा करता.
जब उस ने सुना कि इस चतुर्मास में साध्वी प्रज्ञा भी सत्संग करने आ रही हैं, तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. काफी समय से वह उन्हें चिट्ठी लिखा करता था और जवाब का इंतजार करता, पर जवाब न मिलता.
रजनीश सोचता कि किसी साध्वी से प्यार करना कितनी गंदी सोच है, लेकिन सच भी यही था. वह कब तक इस बात को छिपा कर अपने मन को मारता रहता. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? लोग मारेंगे, पीटेंगे. धर्म से, समाज से, जाति से बाहर कर देंगे. कर दें. उस का है ही कौन.
4 महीने साध्वी की सेवा का मौका मिलेगा और अपनी बात कहने का भी. वह अपनी लिखी गई चिट्ठियों के बारे में भी पूछ सकता है. चिट्ठी उन्हें मिली या नहीं? मिली तो जवाब क्यों नहीं दिया?
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