तमिल फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत राजनीति में आ रहे हैं, यह सवाल अपनी जिज्ञासा खो चुका है, अब सुगबुगाहट यह है कि रजनीकांत कब राजनीति में आ रहे हैं और इससे भी ज्यादा अहम चर्चा इस बात पर हो रही है कि वे भाजपा की डोली में बैठकर दुल्हन बनकर राजनीति के आंगन में पांव रखेंगे या फिर खुद अपनी नई पार्टी बनाकर दूल्हा बनकर बारात निकालेंगे. रजनीकांत जो भी फैसला लें तमिलनाडु की जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ना, जो पलक पांवड़े बिछाकर अपने इस हीरो के फैसले पर से घूंघट उठने का इंतजार कर रही है और मुंह दिखाई के शगुन में थोक में वोट न्योछावर करने तैयार बैठी है.
बीती 17 मई को चेन्नई में रजनीकांत ने अपने प्रशंसकों के लिए दरबार लगाया, तो पूरे तमिलनाडु में अघोषित अलर्ट हो गया था कि वे आज अपने पत्ते खोल सकते हैं लेकिन रजनीकांत का आठ साल बाद चहेतों का हुजूम जुटाने का मकसद कुछ और था, उन्होंने पहली बार राजनीति में आने की बात टरकाई नहीं, बल्कि उसे हां का आकार देते कहा कि राजनीति में आना कोई बुरी बात नहीं है, अगर भगवान चाहता है तो वे राजनीति में आएंगे और अगर वे राजनीति में आए तो राजनीति से पैसा बनाने वालों से दूर रहेंगे.
अतीत में झांकते हुए उन्होंने बड़ी मासूमियत से माना कि 21 साल पहले डीएमके गठबंधन का समर्थन कर उन्होंने भूल की थी. बकौल रजनीकांत, वह एक राजनैतिक दुर्घटना थी. तभी से रजनीकांत के राजनीति में आने की अटकलें लगना शुरू हो गईं थीं पर उन्होने दौबारा ऐसे कोई संकेत नहीं दिये तो उन पर विराम भी लग गया. अम्मा के नाम से मशहूर जयललिता की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी अपनी पार्टी एआईएडीएमके संभाल कर रखने में नाकाम साबित हो चुके हैं और कांग्रेस व भाजपा यहां कहने भर को हैं, ऐसे में सारा फायदा डीएमके के मुखिया एम करुणानिधि को न मिले, इस बाबत दक्षिण में पैर जमाने की कोशिश में जुटी भाजपा की नजरें और उम्मीदें रजनीकांत पर टिकी हैं तो बात कतई हैरत की नहीं.