केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना' की शुरुआत 30 जून, 2020 को की गई थी. इस का मकसद था कि कोरोनाकाल में देश में कोई भी भूखा न सोए. अब हाल ही में इस योजना को अगले 5 साल के लिए आगे बढ़ा दिया गया है. मतलब, सरकार के मुताबिक देश की तकरीबन 80 करोड़ जनता को मुफ्त में राशन मिलता रहेगा.

याद रहे कि कोरोनाकाल में लौकडाउन से प्रभावित गरीबों की मदद के लिए इस योजना को शुरू किया गया था. पर अब केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि अगले 5 साल तक इस योजना के लागू रहने से सरकारी खजाने में से 11.8 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे.

इस योजना के तहत बीपीएल कार्ड वाले परिवारों को हर महीने प्रति व्यक्ति 4 किलोग्राम गेहूं और 1 किलोग्राम चावल मुफ्त दिया जाता है. पर सवाल उठता है कि अब जबकि देश की इकोनौमी कोरोना के साए से पूरी तरह उबर चुकी है, तो भी सरकार ने गरीबों को राहत क्यों जारी रखी हुई है?

क्या यह अगले लोकसभा चुनाव में गरीबों को लुभाने का जरीया तो नहीं है? देश के 80 करोड़ लोग क्या इस राहत से नकारा तो नहीं बन रहे हैं? कोरोनाकाल में इस तरह की योजना को जायज माना जा सकता था, पर अब जब देश की केंद्र सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत होने का दावा कर रही है, तो फिर देश की आधी से ज्यादा जनता को मुफ्त का राशन देना क्या उन के हाथ में कटोरा पकड़ाने जैसा नहीं है?

देश के तथाकथित 'अमृतकाल' में अगर लोग भुखमरी के शिकार हैं, तो केंद्र सरकार के उस दावे यानी हर तरह की रिसर्चों पर ही सवालिया निशान लग जाता है कि हम साल 2075 तक अमेरिका की अर्थव्यवस्था को पछाड़ देंगे.

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