राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत जनवरी महीने के पहले पखवारे पूरे वक्त मध्य प्रदेश में थे. मकसद साफ था कि अपनी सालाना बैठकों में मध्य प्रदेश समेत राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लिए चुनावी तैयारियां करना. वे 11 से 13 जनवरी तक विदिशा में रहे और यहीं से सार की बातें कहीं जो साफतौर पर भारतीय जनता पार्टी का घोषणापत्र है.
इस के पहले उज्जैन और भोपाल में भी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के पदाधिकारियों से चर्चा की थी. मुद्दा था गुजरात में भाजपा को वोट और सीटें कम क्यों मिलीं? नतीजा यह निकला कि दलितों ने उत्तर प्रदेश की तरह गुजरात में न तो भाजपा का साथ दिया और न ही उस पर भरोसा किया, इसलिए उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं आए.
विदिशा आ कर मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों और भाजपाइयों को एकलौता मंत्र यह दिया कि अगर सत्ता का लड्डू खाना है तो दलितों में तिलगुड़ जम कर बांटो. मौका मकर संक्रांति का था इसलिए तिलगुड़ बांटने की नसीहत उन्होंने दी थी.
फिर समरसता की साजिश
27 सितंबर, 1925 से लगातार हिंदू राष्ट्र की सोच पर काम कर रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पहली बड़ी कामयाबी साल 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली थी, जब समाज के सभी तबकों खासतौर से दलितों ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाए जाने के नाम पर वोट दिए थे. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में दलितों ने फिर भाजपा के पक्ष में वोट दिए तो इस की एक अहम वजह संघ के समरसता मंत्र को माना गया था.
इस समरसता के माने बेहद साफ थे और हैं कि संघ दलितों व आदिवासियों को साथ ले कर चलेगा. इस बाबत बजाय सामाजिक बराबरी के धार्मिक पाखंडों पर ज्यादा जोर दिया गया.