राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा इकलौती ऐसी पार्टी है, जिसके पास नरेन्द्र मोदी के अलावा कोई दूसरी सूरत नहीं है. मोदी ऐसे प्रचारित ‘जन नायक’ हैं जो कॉरपोरेट जगत का प्रतिनिधित्व करते हैं. लोकतंत्र के लिये यह जरूरत से ज्यादा बड़ा खतरा हैं कि उसका वजूद आम जनता पर नहीं, राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय निजी कम्पनियों की मरजी पर निर्भर है. यह कड़वी सच्चाई उभर कर सामने आ रही है, कि चुनी हुई सरकारें ही लोकतंत्र के लिये सबसे बड़ा खतरा हैं. और यह खतरा आपके सामने है. केन्द्र के साथ महत्वपूर्ण राज्यों में भी अब मोदी की सरकार है. 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम को ही दोहराया गया है. केन्द्र सरकार की मजबूती बढ़ा दी गयी है, लोकतंत्र में विपक्ष जिन्दा है, लेकिन मरा-मरा.

चुनाव परिणाम आने और प्रायोजित रुझानों को देखते ही साफ हो गया था, कि क्या होने वाला है? आपसी बहस के दौरान यह कहा गया कि इसमें चौकाने वाली कोई बात नहीं है. यह मोदी सरकार को नोटबंदी का रिटर्न गिफ्ट है. यह ‘गिफ्ट’ आम जनता ने नहीं दिया. हो सकता है, कि उसकी अंगुलियां ईवीएम मशीन पर हो, मगर मोदी सरकार ने पिछले सालों में उद्योग जगत और निजी कम्पनियों के लिये जो किया है, भारतीय अर्थव्यवस्था में जितनी दखल उन्हें दी है और देश को जितना बाजार उन्होंने बनाया है, कांग्रेस ने अपने पूरे कार्यकाल में नहीं किया.

नोटबंदी घोषित तौर पर अपने लक्ष्य में असफल और देश की आम जनता पर गहरी मार है और अघोषित रूप से भारतीय मुद्रा पर, उसके लेन-देन पर, कैशलेस ट्रांजक्शन के लिये पेटीएम जैसी निजी कम्पनियों का सशुल्क अधिकार है. जिसका विज्ञापन नरेन्द्र मोदी करते हैं और बड़ी-बड़ी बातें भी. बहकाने वाले बड़े-बड़े वायदे भी. उग्र राष्ट्रवाद और वित्तीय तानाशाही भी. मोदी कॉरपोरेट का गैस भरा गुब्बारा हैं. जिन्हें केन्द्र की लोकसभा ही नहीं राज्यों की विधानसभायें भी इसलिये सौंपी जा रही हैं कि राज्य सभा पर पर उनका अधिकार हो. कि ‘बबुआ ऐसे ही उड़ो.’ जब तक यह उड़ान है, ओहदा और आसमान है.

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