दिल्ली से 130 किलोमीटर दूर स्थित अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी का जिन्ना विवाद 1,920 किलोमीटर दूर कनार्टक के चुनावी समर का प्रमुख अस्त्र बना. जिन्ना पर जंग ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि सांप्रदायिक मुद्दों को भड़का कर लाभ उठाने में भाजपा का कोई मुकाबला नहीं कर सकता है. कर्नाटक चुनाव में धार्मिक मुद्दों की राजनीति से भाजपा वहां सब से ज्यादा सीटें जीतने में सफल हो गई. जिन्ना पर जंग में खास बात यह थी कि इस में पाकिस्तान और जिन्ना का तड़का लगा हुआ था, जो सांप्रदायिक रसोई का सब से तड़केदार मसाला है. ऐसे में कट्टरपंथियों को इस का स्वाद बेहद पसंद आया. जो तसवीर 80 साल से विश्वविद्यालय की पुरानी दीवार पर लटकी थी, अचानक चर्चा के केंद्रबिंदु में आ गई.
जिन्ना पर जंग का असर उत्तर प्रदेश में होने जा रहे उपचुनाव के दौरान धार्मिक धुव्रीकरण के रूप में दिखेगा. भाजपा इस बहाने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलितमुसलिम गठजोड़ को तोड़ना चाहती है, कैराना और नूरपुर के उपचुनाव इस का एसिड टैस्ट साबित होंगे.
भड़काऊ मुद्दे की तलाश
किसी भी मुद्दे को कैसे धार्मिक रंग दे कर भड़काया जाता है, फिर उस के नाम पर सियासत की जाती है, अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी का जिन्ना विवाद इस का जीताजागता उदाहरण है. जिन्ना के नाम पर जंग उस समय शुरू हुई जब दक्षिणभारत में कर्नाटक विधानसभा का महत्त्वपूर्ण चुनाव चल रहा था.
कर्नाटक विधानसभा का चुनाव भाजपा के लिए कितना महत्त्वपूर्ण था, इस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 41 जनसभाएं कीं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कनार्टक विधानसभा चुनाव में सब से बड़े स्टारप्रचारक बन कर उभरे. नरेंद्र मोदी ने जहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ले कर तमाम विवादित बयान दिए, वहीं योगी आदित्यनाथ भाजपा के धार्मिक रंग को गहरा करते रहे.
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